Friday, April 19, 2024

रेत दी दीवार/ रेत की दीवार: सिरायक़ीऔर हिंदी में कविता

  रेत दी दीवार 

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ज़िंदगी रेत दी दीवार 
ज़माने च 
अंधेरियाँ दी भरमार 

रब जाणे, कैड़े वेले 
ढे पवे, एह खोख़ली दीवार 
वल क्यूँ , ज़िंदगी नाल 
इना मोह, इना पियार  


रजनी छाबड़ा 

19 /4 /2024 


रेत की दीवार

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 ज़िन्दगी रेत की दीवार 
ज़माने में
आँधियों की भरमार 
 
जाने कब ठह जाये 
यह सतही दीवार 
फ़िर भी, क्यों ज़िंदगी से 
इतना मोह, इतना प्यार 



डाढा फर्क हे : सिरायक़ी में मेरी कविता

 डाढा फर्क हे 

हंजु पीवण ते 

हंजु व्हावण च 

डाढा फर्क हे 

साह घिनण ते 

जीऊंण च 

रजनी छाबड़ा