Monday, October 26, 2009

lahren

लहरें

सांझ का धुधलका सघन
सागर की लहरें और 
हिचकोले खाता तन मन
संग तुम्हारे महसूस किया मन ने
सागर में सागर सा विस्तार
असीम खुशियाँ, भरपूर प्यार

वक़्त के बेरहम सफ़र में तुम
ज़िन्दगी की सरहद के उस पार
सांझ के तारे में
करती हूँ तुम्हारा दीदार

सागर आज भी वही है
वही सांझ का धुंधलका सघन
हलचल नहीं है लहरों में
सतह लगती है शांत
ठहरा सागर, गहरा मन
रवान है अशांत मन के
विचारों का मंथन

अध्यापक दिवस प्रकाशन २००९,राजस्थान शिक्षा विभाग के काव्य संग्रह 'कविता कानन' में प्रकशित मेरी रचना
रजनी