Saturday, March 6, 2021

नारी

नारी 

नारी को , बस  नारी ही 
क्यों नहीं समझते 


समाज ने स्थापित कर दिए 
उसके लिए 
जीवन के कुछ आदर्श 
कुछ मापदंड 
जिनका पालन करती रहे वह 
तो देवी कहलाती

अपेक्षाओं के सिंहासन से 
उतरते ही 
पतिता बन जाती 

कभी देवी सा पूजते 
कभी पाँवों की जूती मानते 
कभी कठपुतली सा 
मनचाहा नाच नचवाते 
अपेक्षाएं इतनी ऊँची हो गयी 
नारी की ज़िंदगी बौनी हो गयी 


क्यों नहीं मान जाते सब 
वह सिर्फ नारी है 
सहज, सरस, सरल 
सवेंदनाओं की जननी 
सृष्टि की सृजनहारी है/


अपने ढंग से जीने का 
हक़ उसे भी है 
नारी, बस नारी है/