Expression
Wednesday, July 29, 2009
तकदीर
गर रोने से ही
बदल सकती तकदीर
तो यह ज़मीं बस
सैलाब होती
गर अश्क बहाने से
ही होती
हेर गम की तदबीर
यह नम आँखें
कभी बे आब
न होती
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