Saturday, May 15, 2010

mn ki patang

मन की पतंग


पतंग सा शोख मन
लिए चंचलता अपार
छूना चाहता है
पूरे नभ का विस्तार
पर्वत, सागर, अट्टालिकाएं
अनदेखी कर
सब बाधाएं
पग आगे ही आगे बढाएं

ज़िंदगी की थकान को
दूर करने के चाहिए
मन की पतंग
और सपनो का आस्मां
जिसमे मन भर  सके
बेहिचक, सतरंगी उड़ान

पर क्यों थमाएं डोर
पराये हाथों में 
हर पल खौफ
रहे मन में 
जाने कब कट जाएँ
कब लुट जाएँ

चंचलता, चपलता
लिए देखे मन
ज़िन्दगी के आईने
पर सच के धरातल
पर टिके कदम ही
देते ज़िंदगी को मायने


रजनी छाबड़ा