Wednesday, July 29, 2015

यह कैसा नाता है

तुमसे कैसा यह नाता है
खुशियाँ तुम्हें मिलती है
दामन मेरा भर जाता है

करवटें तुम बदलते हो
सुकून मेरा छिन जाता है


आहत तुम होते हो
आब मेरी आँखों में 
उभर जाता है

तुम्हारी आँखों से
अश्क़ छलकने से पहले
अपनी पलकों में समेटने को
जी चाहता है

अठखेलियां करती
 लहरों में 
क्यों तेरा अक्स
 नज़र आता है

खामोश फिज़ाएँ
गुनगुनाने लगती हैं
तेरा ख़याल
मुझ में रम जाता है

कानों में सुरीली
घंटियाँ सी बजती है
जब तेरी आवाज़ का
जादू छाता है

ज़िन्दगी का आधा खाली ज़ाम
आधा भरा नज़र आता है

अनाम रिश्ते को
नाम देने की कोशिश में 
शब्दकोष रीत जाता है

तुम्ही कहो ना
तुमसे यह कैसा
नाता है


रजनी छाबड़ा 

यह चाहत =======

यह चाहत

यह चाहत मेरी तुम्हारी
ग़र यह हसीन सपना है
नींद खुले न कभी मेरी
गर यह हकीकत है
नींद कभी न आये मुझे


रजनी छाबड़ा 







फूल और कलियाँ

फूल और कलियाँ

एक भी पल के लिए,ओ बागवान
अपने खून पसीने से सींची कली को
न आँख से ओझल होने देना
  
एह्साह भी न हुआ ही जिसे कभी
तेज़ हवाओं के चलन का
घिर जाये,अचानक किसी बड़े तूफ़ान में 
अंदाज़ लगा सकोगे क्या, उसकी चुभन का
  
  
फूल बनने से पहले ही
रौंद दी जाती है कली
यह कैसा चलन हुआ 
आज के चमन का

आदम और हवा के
वर्जित फल खाने के कहानी का
जब जब होगा दोहरान
आधुनिक पीड़ी चढ़ती  जायेगी
बर्बरता की एक और सोपान
  
और चमन, यूं ही
बनते जायेंगे वीराने
फूल और कलियों के जीवन 
रह जाएंगे, बन कर अफ़साने 



बहुत भारी मन से ११ वर्ष पूर्व लिखी गयी अपनी कविता आज फिर से शेयर कर रही हूँ/
रजनी छाबड़ा 





Saturday, July 11, 2015

ज़िन्दगी की किताब से
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ज़िन्दगी की किताब से
फट जाता है जब
कोई अहम पन्ना
अधूरी रह जाती है
जीने की तमन्ना

कभ कभी बागबान से
हो जाती है नादानी
तोड़ देता है ऐसे फूल को
जिसके टूटने से
सिर्फ शाख ही नहीं
छा जाती है
सारे चमन में वीरानी
रह जाता है मुरझाया पौधा
सीने में छुपाये
दर्द की कहानी

जिस पौध को पानी की बजाए
सींचना पड़ता हो
अश्कों ओर नए खून से
उस दर्द के पौधे का
अंजाम क्या होगा

अंजाम की फ़िक्र में
प्रयास तो नहीं छोड़ा जाता
मौत के बड़ते कदमों की
आहट से डर
जीने की राह से मुँँह 
मोड़ा नहीं जाता
जब तक सांस
तब तक आस

गिने चुने पलों को
जी भर जीने का मोह
पल पल में
सदियाँ जी लेने की चाह
ज़िन्दगी में भर देता
इतनी महक सब ओर
विश्वास ही नहीं होता
कैसे टूट जाएगी यह डोर

दर्द के पौधे पर
अपनेपन के फूल खिलते हैं
यह फूल रहें या न रहें
इनकी यादों की खुशबू से
चमन महकते हैं



कैंसर रोगियों को समर्पित कविता 
रजनी छाबड़ा