Wednesday, October 28, 2020

I NEGATE MY EXISTENCE

 I NEGATE MY EXISTENCE

I negate my very existence.

Till date, serving you 

Rolls of betel leaves of approval

In dish of demeanor

They were meant to 

Prove false 

Your negation.

 

If you deem these 

As your personal attainments 

Then, I will only declare 

Don't nurture concept that 

I am your mirror. 


I confess my own existence

Till now, I had pressed flying pages of your life

Under the paper-weight of reality

To avoid scattering.

 

If you deem it as

Greatness of your accomplishments  

Then, I will assert this much only

Don't misunderstand me as your advertisement.


My English Translation of Hindi Poem LO MAIN SWAYAM KO NAKARTA HOON, originally composed in Hindi by Mahakavi Late Sh. Kanhaiya Lal Sethia Ji ( Translated with Consent of Sh. Jaiprakash Sethia Ji.





I GET MYSELF STUNG

 I GET MYSELF STUNG

I get myself stung

By huge snakes

So that  they 

Get emancipated 

( Though only momentarily)

 From their venom.


With the wish that 

Some part of my ambrosia

Reaches throat of their

Upcoming generation too.


May be it secures change 

In their coming generation 

And they transform into venom less beings

 Full of ambrosia..

My English version of KHUD KO DANSHIT KRWATA HOON MAIN, originally composed in Hindi by Maha Kavi Late Sh Kanhaiya Lal Sethia

Translated with consent of Sh. Jai Prakash Sethia

Monday, October 5, 2020

SCENIC DUSK / मनोरम गोधूलि बेला

 An English poem by Sundar Rajan , with Hindi translation by myself Rajni Chhabra

SCENIC DUSK

He's dressed, for sure, in all resplendence,   
To galvanise the vast ambiance,  

Awaiting her arrival, so brisk,
As the day gives way to scenic dusk.
Serenely, she skims the horizon,   
Caressing the skys to enlighten.
Her reflections on the dancing waves,
Spells loud and clear, for him she craves.
Pronouncing on waves a flight of stairs,
For him to know fully well she cares.
But she has vanished from the scene,
Only to return soon to be seen.
It remains a distant wishful dream,
Being poles apart, can they ever team.
They can at best, their strengths, admire
From a distance, as they retire.
By Sunder Rajan

 

 मनोरम गोधूलि बेला 

****************

 वह पहरन ओढ़े हुए , अपनी पूरी चमक का, निश्चित रूप से

 सम्पूर्ण वातावरण को अपनी चमक के आवरण से ढकने के लिए 

 

उसकी प्रतीक्षा में लीन , तीव्र गति से 

उस क्षण जब दिन ढलने को है  

वह क्षितिज के ऊपर से गुज़र जाती है 

बादलों को सहलाती हुुई, आलोक बिखेरने के लिए 

नृत्य करती लहरों के ऊपर

सीढ़ियों सी प्रतिबिम्बित होती 

स्वरित होती है कि वह आकुल  है उसके लिए 

 

पर वह अदृश्य हो गयी है अचानक 

फिर से आने के लिए 

 

यह एक सुदूर सपना ही तो है 

दो अलग ध्रुवों सा , वे मिल न पायेंगे कभी  

अधिक से अधिक वे गुणगान कर सकते हैं 

इक दूजे की भव्यता का

एक दूरी बनाये हुए

जब अस्त हो रहे हो दोनों /

@रजनी छाबड़ा 

बहु भाषीय कवयित्री व् अनुवादिका

 

Sunday, September 13, 2020

Wednesday, August 19, 2020

' सृजन संवाद'

आज डॉ. नीरज दइया जी की हिंदी कृति ' सृजन संवाद' के प्रकाशित होने व् उन्हें लेखकीय प्रतियाँ प्राप्त होने की सुखद सूचना मिली/  यह जानना भी अत्यन्त सुखद है कि राजस्थानी के लेखकों से सृजन संवाद की यह पहली किताब है , जिस में डॉ नीरज दइया द्वारा लिए गए साक्षात्कारों के साथ  ही साथ उनका भी साक्षात्कार इस कृति में शामिल है/ इस किताब में महाकवि श्री कन्हैयालाल सेठिया से व्यंग्यकार -कहानिकार बुलाकी शर्मा तक की एक पूरी साहित्य को धनवान करने वाली पीढ़ी से संवाद हुआ है/ स्वाभाविक रूप से इस साहित्यिक यात्रा को जानने की उत्सुकता जागृत  हो रही है/

किताब गंज, दिल्ली से प्रकाशित यह उत्कृष्ट पुस्तक, मेरे लिए एक और कारण से भी बहुत विशिष्ट हो गयी है/ यह पुस्तक मुझ नाचीज़ को समर्पित की गयी है/ मैंने तो कभी सपने में भी न सोचा था कि कवि - मित्र डॉ. नीरज दइया , जिन्हे मैं, हिंदी और राजस्थानी भाषा में अपना पथ प्रदर्शक मानती हूँ, मुझे इतना अधिक मान देंगे/

बीकानेर से मेरा पुराना नाता है/मैंने अपने जीवन के ३५ यादगार साल यहाँ राजकीय सेवा में बिताएं है व् साहित्यिक सरोकार तो है ही/ बीकानेर में थी तो नीरज जी से कोई परिचय नहीं था/ २०१५ में  उन्हें बेंगलुरु में साहित्य अकादमी द्वारा उनकी बाल साहित्य कृति जादू रो पेन के लिए सम्मानित किया गया/  स्वैच्छिक सेवा निवृति के बाद, मैं बेंगलुरु में ही बस गयी थी/ राजेन्द्र जोशी जी ने ज़िक्र किया कि अपने बीकानेर के लेखक नीरज जी वहां सम्मानित हो रहे हैं, इस नाते उनकी खुशी में शरीक़ होने अकादमी गयी/ यही पहला परिचय था/ इस के बाद जब भी बीकानेर आती, उनसे मुलाकात अवश्य होती / लगभग तीन साल से, मैं गुरुग्राम रहने लगी हूँ/ बीकानेर से निरंतर सम्पर्क है/
गत वर्ष  भी, बुलाकी शर्मा जी व् नीरज जी, मेरे निवास पर मिलने आये/ बातों ही बातों में मैंने उनसे ज़िक्र किया, हिंदी व् उर्दू की सशक्त हस्ताक्षर, नासिरा शर्मा जी से उनके निवास पर मेरी आत्मीय मुलाकात का/ मैंने अनौपचारिक बातचीत के दौरान, दीदी के कुछ वीडियो भी बनाये थे/ शर्मा जी व् दइया जी ने, एक साथ ही मुझसे सवाल किया कि मैंने उनका इंटरव्यू क्यों नहीं लिया/ मेरा सीधा, सहज जबाब यह था कि मुझे तो औपचारिक रूप से इंटरव्यू लेना आता ही नहीं/ आप सीखा दीजिये तो आपके द्वारा दिया गया ज्ञान मेरे लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगा/ बुलाकी जी ने कहा, "आप तो दिल्ली में हैं/साहित्यकारों के गढ में रहती हैं/ आपको इतने अवसर मिलते हैं, प्रतिष्ठित साहित्यकारों से मिलने के; इन मुलाकातों को कलमबद्ध कीजिये/"
नीरज जी कुछ नहीं बोले/ उनका मंद मंद मुस्कुराने का अंदाज़ संकेत दे देता है कि कुछ नया होने को है/
अभी कुछ दिन पहले मुझे सूचना दी कि सृजन संवाद शीघ्र ही प्रकाशित हो रहा है और  इसका संक्षिप्त परिचय दिया/
अब में आश्वस्त हूँ  कि सृजन संवाद पढ़ कर , मुझे भी प्रोत्साहन मिलने वाला है साक्षात्कार लेने हेतु/ कवयित्री और अनुवादक होने के नाते, अक्सर मुलाकातें होती है , प्रसिद्ध रचनाकारों से/ मैं  हृदयतल से आभारी हूँ डॉ नीरज दइया की, इस मार्गदर्शन के लिए/
इस पुस्तक में सम्मिलित राजस्थानी साहित्य के कुछ अग्रजों के बारे में केवल सुना है, कुछ से व्यक्तिगत परिचय भी है/ इस पुस्तक के माध्यम से और अधिक जानने का अवसर मिलेगा/ सभी को बहुत बहुत बधाई/
किताबगंज प्रकाशन को इस उत्कृष्ट प्रकाशन के लिए बधाई व् लोकप्रियता के लिए शुभ कामनाएँ /

रजनी छाबड़ा
बहु भाषीय कवयित्री  एवं अनुवादिका




Wednesday, August 5, 2020

रीते लम्हे

रीते लम्हे


इन दिनों
आँखों में जो
हल्का हल्का सरूर है
यह तुम्हारा
मेरी ज़िन्दगी में
 होने का गरूर है/


धुली धुली से लगती हैं कायनात
मटमैली ज़िंदगी ने बदली है करवट
यह तुम्हारे क़दमों की आहट का असर है
 या मेरा मदहोश ख्याल है/


रीते लम्हे लबालब हो  गए
तेरे ख्यालों की बौछार से
इन्हे सहजे ही रखना है
ता  उम्र
यही मेरी खुशी
यही मेरा हर त्यौहार है/

Sunday, July 5, 2020

आस की कूची से

आस की कूची से
ज़िंदगी के कैनवास  पर
आओ कुछ चित्र उकेरे
खुशियों के रंग बिखेरें


 प्यार की लालिमा सा रक्तिम
और सुनहरे दिनों सा पीला रंग


अम्बर से विस्तार का नीला
और खुशहाली का हरा रंग


सपनों  का नारंगी और
मन आँगन की शुचिता का धवल रंग


 दूर रहे बैंजनी विषाद
जीवन सब का रहे आबाद /


@रजनी छाबड़ा

Thursday, June 25, 2020

'मन के बंद दरवाज़े'

हार्दिक आभार, संपादक महोदय, शाद्वल बीकानेर, आपके प्रतिष्ठित द्विभाषीय समाचार पत्र में मेरी रचना  'मन के बंद दरवाज़े' को स्थान देने के

मन के बंद दरवाज़े

मन के बंद दरवाज़े

इस से पहले कि
अधूरेपन की कसक
तुम्हे कर दे चूर चूर
ता उम्र हँसने से
कर दे मज़बूर
खोल दो
मन के बंद दरवाज़े
और घुटन को
कर दो दूर


दर्द तो हर दिल में  बसता है
दर्द से सबका पुश्तैनी रिश्ता है
कुछ अपनी कहो, कुछ उनकी सुनो
दर्द को सब मिलजुल कर सहो


इस से पहले कि दर्द
रिसते रिसते, बन जाये नासूर
लगाकर हमदर्दी का मरहम
करो दर्द को कोसों दूर


बाँट लो, सुख दुःख को
मन को, जीवन को
स्नेहामृत से कर लो  भरपूर
खोल दो मन के बंद दरवाजे
और घुटन को कर लो दूर


रजनी

Friday, May 1, 2020

बाल श्रमिक 


वह जा रहा है ,बाल श्रमिक 
अधनंगे बदन पर, लू के थपेड़े सहते
तपती सुलगती दुपहरी में
सिर पर उठाये, ईंटों से भरी तगारी

सिर्फ तगारी का बोझ नहीं 
मृत आकांक्षाओं की अर्थी
निज कन्धों पर उठाये
नन्हे श्रमिक के थके थके
बोझिल कदम डगमगाए
तन मन की व्यथा किसे सुनाये

याद आ रहा है उसे
माँ जब मजदूरी पर निकलती और 
रखती अपने सिर पर
ईंटों से भरी तगारी
साथ ही रख देती
दो ईंटें उसके सिर पर भी
जिन हालात में खुद जी रही थी
ढाल दिया उसी में  बालक को भी

माँ के पथ का 
बालक नित करता अनुकरण
लीक पर चलते चलते 
खो गया कहीं मासूम बचपन
शिक्षा की डगर पर
चलने का अवसर 
मिला ही नहीं कभी
उसे तो विरासत में मिली
अशिक्षा की यही कंटीली राह

आज यही राह 
ले चली उसे
अशिक्षा सने 
अँधेरे भविष्य की ओर 
खुशहाल ज़िन्दगी की भोर
होती जा रही कोसों दूर

काश! वह, रोजी रोटी की फ़िक्र के
दायरे  से निकल पाए
थोडा वक़्त खुद के लिए बचाए
जिसमे पढ़ लिख कर 
संवार ले बाक़ी की उम्र

बचपन के मरने का जो दुःख 
उसने झेला
आने वाले वक़्त में 
वह कहानी ,
उसकी संतान न दोहराए
पढ़ने की उम्र में श्रमिक न बने
कंधे पर बस्ता उठाये
शान से पाठशाला जाये.

रजनी छाबड़ा 


Just care to see
That child labour
half clad
Bearing heat wave
in sun scorched noon
carrying on his head
crate full of bricks

not only crate  full of bricks,
also carrying burden of
dead aspirations on his head
tired steps of that frail labourer
are stumbling.
with whom can he share his agony?

he recalls
when his mother went for labour
taking him along
and carried crate of bricks
on her head
used  to put two bricks
on his head as well
thus made him accustomed
to way of life that she was leading

Child kept on following mother


Wednesday, February 5, 2020

जी रही हूँ मैं?

जी रही हूँ मैं?

ऐ हवाओं ,ऐ फिजाओं
मुझे, मेरे होने का
एहसास दिलाओ

साँस ले रही हूँ मैं,
अपने जिंदा होने का
यकीन नहीं
क्या ज़िंदगी के ख़िलाफ़
यह जुर्म संगीन नहीं

एक पल में  जी लेना
एक जनम
हर धडकन में 
संगीत की धुन
हर स्पंदन में 
पायल की रुनझुन
रेशमी आंचल का
हौले से सरसराना
निगाहों से निगाहों में 
सब कह  जाना
बिन पंखों के
आकाश नापना

पूर्णता का अहसास
सब,ख्वाबों की बात हो गया
रीते लम्हे ,रीता जीवन
जीवन तो बस, बनवास हो गया

सौंधी यादों के उपवन
फिर महकाओ
ऐ हवाओं,ऐ फिज़ाओं
मुझे मेरे होने का
एहसास दिलाओ
 @रजनी छाबड़ा