Sunday, December 4, 2022

मन के बंद दरवाज़े

 मन के बंद दरवाज़े 

****************

इस से पहले कि

 अधूरेपन की कसक 

तुम्हें कर दे चूर-चूर

 ता-उम्र हँसने से कर दे मज़बूर 

खोल दो

 मन के बंद दरवाज़े 

और घुटन को

 कर दो दूर 

दर्द तो हर दिल में बसता है

 दर्द से सबका पुश्तैनी रिश्ता है 

कुछ अपनी कहो 

कुछ उनकी सुनो 

दर्द को सब मिलजुल कर सहो

 इस से पहले कि दर्द

 रिसते-रिसते बन जाए नासूर 

लगाकर हमदर्दी का मरहम 

करो दर्द को कोसों दूर

 बाँट लो

 सुख-दुःख को 

मन को, जीवन को 

स्नेहामृत से कर लो भरपूर 

खोल दो मन के बंद दरवाजे 

और घुटन को कर दो दूर 



Sunday, October 30, 2022

'बात सिर्फ इतनी सी' : हिंदी काव्य-संग्रह


बात सिर्फ इतनी सी

सपनों का वितान और यादों का बिछौना/ नहीं रहता इनसे अछूता/ मन का कोई भी कोना/

जीवन की छोटी छोटी खुशियाँ और यादों के मधुबन हमारी अमूल्य निधि हैं/ रिश्तों की गरिमा, अपनों का सानिध्य, अस्तित्व की पहचान और सौहार्द पूर्ण सह-अस्तित्व यही तो ताने -बाने हैं हमारे सामाजिक परिवेश के/ यदि यही सामजिक ताना -बाना तार-तार होने के कगार पर हो, कवि का संवेदनशील मन अछूता कैसे रह पायेगा/ यही अनुभूतियाँ कलमबद्ध करने का प्रयास किया है, अपनी काव्य-कृति 'बात सिर्फ इतनी सी' के माध्यम से/

बचपन से लेकर उम्र के आख़िरी पड़ाव तक का सफर, बहुआयामी चिंताएं, अन्याय, उत्पीड़न, नगरीकरण का दबाव, अपनी माटी की महक, जीवन मूल्यों के प्रति निष्ठा, संस्कारों के प्रति आस्था, अबोले बोल और आकुलता ऐन्द्रिय धरातल पर कुछ बिम्ब बनाते हैं/ इन्हे शब्दों का रूप दे कर उकेरा है/

जो दूसरों के दर्द को

निजता से जीता है

भावनाओं और संवेदनाओं को

शब्दों में पिरोता है

वही कवि कहलाता है

यही दायित्व निभाने की कोशिश की है, अपनी रचनाओं के माध्यम से/ इन कविताओं का मूल्यांकन मैं अपने सुधि पाठकों पर छोड़ती हूँ/ आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी/

रजनी छाबड़ा
बहु-भाषीय कवयित्री व् अनुवादिका

अद्भुत काव्य संग्रह : बात सिर्फ़ इतनी सी :साहित्य भूषण आचार्य मूसा खान अशान्त बाराबंकवी


 



अद्भुत  काव्य संग्रह

       ' बात सिर्फ़ इतनी सी'  ये आज के समय की सुप्रसिद्ध कवयित्री,अनुवादिका और अंकशास्त्रीं  रजनी छाबड़ा जी की 60 कविताओं का सँग्रह है। सभी कविताएं एक से बढ़कर एक हैं । साँझ के अँधेरे में, दीवार,खामोशी, अधूरी आरज़ू,ये कैसा सिलसिला आदि सभी कविताओं में कवयित्री ने जीवन के विभिन्न पहलुओं को बहुत ही दार्शनिकता पूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया है।

     मुझे आशा ही नही अपितु आदमक़द विश्वास है कि इस काव्य सँग्रह की रचनाओं को काव्य प्रेमियों द्वारा भरपूर प्यार मिलेगा क्योंकि इसकी भाषा तो सरल, सहज तथा बोधगम्य होने के साथ प्रभावशाली है। रजनी छाबड़ा जी  ने निस्संदेह बहुत श्रम किया है, मैं इस काव्य सँग्रह के अवतारणा के लिए उन्हें बधाई देता हूँ।

   आशा है, उनकी यह नव्यतम कृति *' बात सिर्फ़ इतनी सी '* अक्षय कीर्ति अर्जित कर विश्व हिंदी काव्य जनमानस में प्रतिष्ठित होगी।

                 शुभकामनाओं सहित

  (साहित्य भूषण आचार्य मूसा खान अशान्त बाराबंकवी  )

     7376255606

Sunday, October 23, 2022


 मेरी दीवाली
*********

तम्मनाओं की लौ से
रोशन किया
एक चिराग
तेरे नाम का


लाखों चिराग
तेरी यादों के
ख़ुद बखुद
झिलमिला उठे



पहचान 

******

अंधकार को

अपने दामन में समेटे
ज्यों दीप बनाता है

अपनी रोशन पहचान


यूं ही तुम
अश्क़ समेटे रहो
खुद में 

दुनिया को दो

सिर्फ मुस्कान 

 

अपनी अनाम  

ज़िन्दगी को  

यूं दो एक नयी पहचान

 

 जीना बस इस अंदाज़ से 

 गुमनामी के अँधेरे चीर

 बन जाओ ज़िंदगी की शान  

 

रजनी छाबड़ा 

Tuesday, October 18, 2022

प्रस्तावना :बात सिर्फ इतनी सी



 प्रस्तावना : बात सिर्फ इतनी सी 

सपनों का वितान और यादों का बिछौना/ नहीं रहता इनसे अछूता/ मन का कोई भी कोना/  

जीवन की छोटी छोटी खुशियाँ और यादों के मधुबन हमारी अमूल्य निधि हैं/ रिश्तों की गरिमा, अपनों का सानिध्य, अस्तित्व की पहचान और सौहार्द पूर्ण  सह-अस्तित्व यही तो ताने -बाने हैं हमारे सामाजिक परिवेश के/ यदि यही सामजिक ताना -बाना तार-तार होने के कगार पर हो, कवि का संवेदनशील मन अछूता कैसे रह पायेगा/ यही अनुभूतियाँ कलमबद्ध करने का प्रयास किया है, अपनी काव्य-कृति 'बात सिर्फ इतनी सी' के माध्यम से/

बचपन से लेकर उम्र के आख़िरी पड़ाव तक का सफर, बहुआयामी चिंताएं, अन्याय, उत्पीड़न, नगरीकरण का दबाव, अपनी माटी की महक, जीवन मूल्यों के प्रति निष्ठा, संस्कारों के प्रति आस्था, अबोले बोल और आकुलता ऐन्द्रिय धरातल पर कुछ बिम्ब बनाते  हैं/ इन्हे शब्दों का रूप दे कर उकेरा है/ 

जो दूसरों के दर्द को 

निजता से जीता है 

भावनाओं और संवेदनाओं को 

शब्दों में पिरोता है 

वही कवि कहलाता है 

यही दायित्व निभाने की कोशिश की है, अपनी रचनाओं के माध्यम से/ इन कविताओं का मूल्यांकन मैं अपने सुधि पाठकों पर छोड़ती हूँ/ आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी/

रजनी छाबड़ा 
बहु-भाषीय कवयित्री व् अनुवादिका 

विश्वास के धागे

 

  



  विश्वास के धागे

   ***********

    विश्वास के धागे

    सौंपे हैं तुम्हारे हाथ

 कुछ उलझ से गए है

 सुलझा देना मेरे पालनहार

 तुम तो हो सुलझे हुए कलाकार 

पर इन दिनों वक़्त ही नहीं मिलता तुम्हें 

बहुत उलझ गए हो सुलझाने में

 दुनिया की उलझने बेशुमार 

मेरे लिए भी थोड़ी फुर्सत निकालो ना 

टूटे नहीं विश्वास मेरा

 तुम्हीं कोई राह निकालो ना

 कहते हैं दुनिया वाले 

खड़ी हूँ ज़िंदगी और मौत की सरहद पर

 तुम्हीं हौले-हौले ज़िंदगी की ओर सरका दो ना 

ज़िंदगी हमेशा हसीन लगी हैं मुझे

 लिए यही खुशगवार एहसास 

रहने देना अपनों के संग 

क्या अब भी कर लूँ तुम पर यह विश्वास ?

Thursday, October 13, 2022

पर्यावरण

 पर्यावरण 

*********

कहाँ गए वो दिन

जब नदियाँ  दायिनी थी 

हवाएँ शीतल, सुगन्धित, सुवासिनी थी 

सुकून दिया करती थी तन -मन को हरियाली 

वन-उपवन गया करती  कोयल मतवाली 

बटोही सुस्ताया करते थे वृक्षों की शीतल छाँव में 

खुशहाली छाई  रहती थी शहर और गॉव में 


अब तो प्रदूषित हुआ नदी का जल 

कारखानों की चिमनियाँ धुंआ उगलती अविरल 

शहरीकरण की दौड़ में कटने लगे अंधाधुंध जंगल 

कोयल की कूक दबा गए, लाउड स्पीकरों के दंगल 


इस से पहले की आने वाली पीढ़ी 

शुद्ध  वायु,  शुद्ध जल , वन- उपवन के लिए तरसे 

वनों के अभाव में बदली 

निकल जाए बिन बरसे 

हमें फिर से, जी जान से ,उचित पर्यावरण जुटाना होगा 

वन सरंक्षण का व्यापक आंदोलन चलाना होगा 

(

पर प्रदूषण क्या सिर्फ भौतिक स्तर पर ही है ; आज मानसिक प्रदूषण भी कुछ कम नहीं )


धर्म और सदाचार का स्थान ले चुके हैं 

उग्रवाद, कट्टरवादिता और अनाचार 

कहां गए वो सात्विकता , सहनशीलता , सहकारिता के भंडार 

कहांगए वो दिन, जब एक दूजे के दुःख में 

जान देने को हम रहते थे तैयार 

निष्पक्षता का स्थान ले चुका है  भ्र्ष्टाचार 

मन के आवरण  है चहुँ ओर अन्धकार 


ऐसे भौतिक और मानसिक प्रदूषण से घिरे 

हम कब  तक स्वस्थ रह पाएंगे 

पर परेशानी से उबारने के लिए 

आसमाँ से कोई फ़रिश्ते तो न आएँगे 

हमें  ही जी जान  से उचित पर्यावरण जुटाना होगा 

सोयी हुई मानसिकता  को जगाना होगा 

भावी पीढ़ी को फिर से सहनशीलता, सहकारिता

 सात्विकता , धर्मनिरपेक्षता का पाठ  पढ़ाना होगा 

ज्ञान के  प्रकाश से ,  मन पर छाया अन्धकार मिटाना होगा 

भौतिक ही नहीं, मानसिक पर्यावरण में भी 

समूचा बदलाव लाना होगा /


रजनी छाबड़ा 

5 /6 /2005 


Wednesday, October 12, 2022

वक़्त कहीं खो गया है

 वक़्त कहीं खो गया है 

*****************

ज़िन्दगी की उलझनों में 

आज का इंसान 

इतना व्यस्त हो गया है

उसका ख़ुद का वक़्त 

कहीं खो गया है


तीन झलकियाँ 

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१. बच्चों की दिनचर्या 

"माँ , सुबह साढ़े चार बजे का अलार्म लगाना है 

मुझे टेस्ट की तैयारी कर स्कूल जाना है"/

पढ़ के, नहा धोकर , होकर तैय्यार 

घड़ी देखते हुए, दूध का गिलास , हलक से उतारते हैं 

बस्ते के बोझ से दोहरी हो रही कमर 

फिर भी, बस न छूट जाएँ कहीं 

एक क़दम में दो कदम का फ़ासला नापते हैं 

दिनभर स्कूल में पढ़ाई में उलझे , वापसी पर 

साथ में ढेर सा होमवर्क लाते हैं 

अभी ट्यूटर के पास  भी जाना है 

साथ ही साथ,स्कूल से मिला 

प्रोजेक्ट वर्क भी सिरे चढ़ाना है 

रात को टी वी सीरियल देखते हुए 

दो कौर खाना गले से उतारते हैं

उनींदी  आँखों से ,सब होमवर्क निपटाते हुए 

पेन हाथ में लिए , कॉपी पर सिर रखे 

पता ही नहीं कब आँख लग जाती है 

माँ दुलारते हुए उठाती है 

लाड़ले को बिस्तर तक पहुँचाती है 


२. कामकाजी महिला की दिनचर्या 

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सुबह बच्चों को भारी बस्ते और टिफ़िन से 

लादकर स्कूल रवाना करती ममतामयी नारी 

चूल्हे-चौके में खपती , पति को दफ्तर भेज

आनन -फानन करती खुद दफ्तर जाने की तैय्यारी 

दफ़्तर ग़र बस से जाती है, सफर में 

समय का सदुपयोग करने को स्वेटर बुनती जाती  

या फिर घरमें न कर पायी इष्ट -देवता का ध्यान 

बस में ही करती जाती ईश-स्मरण बिन व्यवधान 

आफिस में सिर उठाने की फुर्सत नहीं 

फाइलों के जमा-घटा के  आंकड़ों में 

उलझ गया है ज़िंदगी का गणित 

ज़िंदगी में अब पहले सी लज़्ज़त नहीं 

घर पहुँच कर बच्चों को होमवर्क कराना है 

फिर से चूल्हे चौके में ख़ुद को खपाना है 

परिवार की फरमाईशें पूरी करते करते 

कल  की  चिंता करते हुए सो जाना है 

मनचाहे कुछ 

इस पूरे वक़्त में, बस एक ही तो वक़्त उसका है 

आफिस से घर तक की वापिसी का सफर 

जब वह छोड़ देती हैं खुले ,अपने दिमाग के ख़्याली घोड़े 

सोचती है जब वक़्त मिलेगा उसे 

बिताएगी मनचाहे कुछ दिन थोड़े 

पर वक़्त है कि मिलता ही नहीं 

शिकायत करे भी तो किससे ,वह बेचारी 

अपने इर्द-गिर्द व्यवसतता के ताने बाने बुनती 

ख़ुद अपने ही जाल में, मकड़ी सम उलझी नारी/


3. पति महोदय की दिनचर्या 

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सुबह बीवी बच्चों को पढ़ाने में व्यस्त है 

वहीँ से आवाज़ देती है 

" अजी, अब उठे हैं आप 

अपने साथ साथ एक कप चाय 

मेरे लिए भी बनाते लाईये 

आज महरी भी तो नहीं आयी 

बाकी काम मैं करती हूँ 

आप खाना बनाने में हाथ बँटवाइये "

अपने अपने टिफ़िन और चाभी के गुच्छे समेटते 

बीवी को उसके ऑफिस तक लिफ्ट देते 

पहुंचते हैं श्रीमान ऑफिस में 

दिन भर काम में उलझे रहने के बाद 

राह का धुंआ निगलते , पहुँचते हैं घर पर 

बीवी थकी हुई , शुष्क मुस्कान के साथ 

पिलाती है एक कप चाय और 

उलझ जाती है रसोई में 

थमाकर उसके हाथ 

एक अदद थैला ,सौदा सुल्फ लाने को 

कभी जिद कर के, दिलवाती है छुट्टी 

आज पोलियो की दवा पीने जाएगी बिट्टी 

कभी करती है राशन की कतार में 

खड़े रहने को तैय्यार 

कभी थमा  देती है बिजली पानी 

फ़ोन का बिल, कर के मनुहार 

पढ़ते हैं श्रीमान शाम की फुर्सत में 

सुबह का बासी अख़बार 

कुछ टी वी से जानते हैं 

दुनिया की खैर ख़बर 

सब मुलाकातें, दुनियादारी छोड़ देते हैं 

आने वाले रविवार पर 

फिर रविवार को मेहमान-नवाज़ी में 

और परिवार की फरमाइशों  में उलझ जाते हैं 

घूमने-फिरने, आराम करने की 

फुर्सत ही कहाँ पाते हैं /


ज़िंदगी की उलझनों में 

आज का इंसान, इतना व्यस्त हो गया है 

उसका खुद का वक़्त कहीं खो गया है /


रजनी छाबड़ा 

12/12/2004 

ख़ामोशी

 ख़ामोशी 

********


ख़ामोशी बोलती है 

तेरी आँखों की जुबान से 

अनकहे लफ़्ज़ों की 

कहानी बन जाती है 


हौले से स्पर्श कर 

पवन 

ख़िला जाती है 

अधखिली कली को 

वो छुअन 

ज़िंदगी की रवानी 

बन जाती है 


तेरी खुशबू ले के 

आती है बयार 

वो पल बन जाते हैं 

ज़िंदगी की यादगार/


रजनी छाबड़ा 

22/12/2004 

Thursday, October 6, 2022

अधूरी क़शिश

अधूरी क़शिश 

************

हवा  के झोंके सा 
बंजारा मन 
संदली बयार 
सावनी फ़ुहार 
क़ुदरत पे निखार 
 भावनाओं केअंबार 

 पतंग सरीखा मन 
क्षितिज छूने की 
तड़पन  

और धरा की 
जुम्बिश 
रह गयी 
अधूरी क़शिश 


रजनी 
27/2/2009 

अनबन

 तपती धरती 

जल  से अनबन 

 कैसे बने 

जीवन मधुबन 


रजनी  छाबड़ा 

 25 /4 /2004 

कैसा गिला ?

 कैसा गिला ?

**********

सुर्ख,  उनीदीं आँखें 

पिछली रात की करवटें 

रतजगा 

न ख़त्म 

 होने वाला सिलसिला 


विरहन का यही 

 अमावसी नसीब 

 किस से शिकवा 

 कैसा गिला?


रजनी  छाबड़ा 

8 /5/2004 

सफर


सफर 

*****

आँखों से आंखों में 

समाहित होने का सफर 

कहीं कट जाता 

एक  पल में 

कभी अधूरा रहता 

युग युगान्तर 


रजनी छाबड़ा 

1 /5 /2004 

Tuesday, October 4, 2022

बहता मन


बहता मन



बहता मन , ठहरा तन 
जीवन अजब उलझन 

चाहता मन , उन्मुक्त धड़कन 
निभाता तन, संस्कारों की जकड़न 

बहता मन, ठहरा तन 
जीवन अजब उलझन 

रजनी छाबड़ा 
अप्रैल 2 , 2004 

बयार और बहार







बयार और बहार 
************

सिर्फ़ बयार से ही आती है 
चमन में बहार 
ग़र सोचते हो ऐसा 
करते हो भूल 

वक़्त के थपेड़े 
खा कर भी 
केक्टस में 
खिलते हैं फ़ूल 

रजनी छाबड़ा 
मार्च 5, 2015 

Sunday, August 28, 2022

उदास

 उदास 

******

कौन रहा है 

इस दुनिया में 

हमेशा के लिए 


फिर भी 

ए ! ज़िंदगी 

तुझ से बिछुड़ने 

का ख़्याल 

क्यों कर जाता है बेहाल 

क्यों कर जाता है 

मुझे उदास 

@रजनी छाबड़ा 


Koun rha hai 

Is duniya mein

Hamesha ke liye


Phir bhee

Zindagee

Tujh se bichudane

Ka khyaal

Kyon kr deta hai

Mujhe udaas. 

Tuesday, August 16, 2022

तिनका तिनका नेह / Tinka Tinka Neh


 

तिनका तिनका नेह 

**************

नीड़ को 

तिनका तिनका जुटा 

सजाती है चिड़िया 

कुछ कपास

 कुछ धागे भी 

बटोर लाती है चिड़िया 

नीड़ में गरमाहट 

लाने के लिए 


अंडों को सेने के बाद 

दायित्व मुक्त 

नहीं हो जाती चिड़िया 


अपने  दुलारों के लिए 

चुग्गा बटोरती 

उनकी चोंच में डालती 

मातृत्व  का सुख 

पाती है चिड़िया 


नीड़ के बाहर की दुनिया से 

उनका परिचय करवाती 

नन्हे पंखों से 

खुले आसमान में 

उड़ान भरना सिखाती 


जीवन चक्र 

यूं ही चलता जाता 

बीतते वक़्त के साथ ही साथ 

चिड़िया का बल घटता जाता 

भोर होते ही 

पाखी भर लेते उड़ान 

रुकी रहती सूने नीड़ में 

उनकी माँ 


सांझ ढले पाखी 

लौट आते अपने नीड़ में 

सहेजे अपनी चोंच में 

माँ के लिए चुग्गा- दाना 


यह रिश्ता हैं पनपता 

सवेंदनाओं की दुनिया में

प्यार पगा नीड़ 

खुशियों का आशियाना /

रजनी छाबड़ा 

Needh ko

 Tinka tinka jutaa

Sajati hai chiddhia 

Kuch kapas

 Kuch dhage bhee

 Bator lati hai chidhia 

Needh mein 

garmaht lane ke liye 



Andon ko sene ke baad

Dayitv mukt

Nahin ho jatee chidhia

Apne dularon ke liye 

Chugaa batortee 

Unkee chonch mein daaltee

Matritv ka sukh

Patee hai chidhia


Needh ke bahar kee duniya se 

Unka paricay krwatee

Nanhe pankhon se 

khule asmaan mein 

Udhaan lena sikhatee


Jeevan chakar yoon hee 

Chalta jata

Bitate waqt ke saath saath

Chidhiyaa ka bl ghatata jata 

Bhor ugate hee

 Pakhee bhar lete udhaan

Pankh samate ab 

Rukee rahtee hai

Soone needh mein unkee Maa


Sanjh dhale,  pakhee

Lout aate apne needh mein

Samate apnee nanhee chonch mein

Maa ke liye chugaa - dana .

Yeh rishta hai panpata

Sawendnaon kee duniya mein.

Pyar paga needh

Khushiyon ka aashiyana.


rajni chhabra 

needh ko

 tinka tinka jodh

Sajati hai chiddhia 

Kuch kapas bhee bator lati hai

Needh mein garmaht lane in ke liye 



Andon ko sene ke baad

Dayitv mukt

nahin ho jatee chidhia

apne dularon ke liye 

chugaa batortee 

unkee chonch mein daaltee

matritv ka sukh

patee hain chidhia


needh ke bahar kee duniya se 

unka paricay krwatee

nanhe pankhon se 

khule asmaan mein 

udhaan lena sikhatee


jeevan chakar yoon hee 

chalta jata

bitate waqt ke saath saath

chidhiyaa ka bl ghatata jata 

bhor ugate hee

nanhe pakhee bhar lete udhaan

pankh samate ab rukee rahtee hai

soone needh mein unkee Maa


Sanjh dhale, nanhe pakhee

lout aate apne needh mein

samate apnee nanhee chonch mein

Maa ke liye chugaa - dana .

yeh rishta hai panpata

sawendnaon kee duniya mein.

pyar paga needh

khushiyon ka aashiyana.


सुरंग/ SURANG

 

सुरंग

****

पहाड़ का सीना चीर  के

 बनायी जाती है सुरंग 

अंधेरों की राह 

पार कर के 

जीवन में मिलते 

उमंग और तरंग /



Pahaar ka seena cheir ke

Banayee jati hai surang


Andheron kee raah

 Paar kr ke

Jeevan mein  milte

Umang aur tarang



उलझन / ULJHAN

 उलझन 

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पसीने के मोतियों से 

खुशहाली के हार पिरोते हैं 

तपती  दुपहरी में 

ख़ुरदरी ज़मीन पर 

कुछ पल सुस्ताते 

शिक़वा नहीं करते किसी से 

नमी आँखों में सोख लेते हैं 


अब के बरस 

घर की टूटी छत की 

मरम्मत के लिए 

कुछ जुगाड़ करना है 

बिटिया के हाथ पीले करने  का 

वक़्त भी आ गया है 

बेटे की आगे की पढाई के लिए

 शहर भेजने के लिए भी 

धन जुटाना है 

इतनी उलझनों के जाल में उलझे 

ज़िंदगी के धागे कैसे सुलझें 


साहूकार से क़र्ज़ न लेने की ठानी है 

उड़ती उड़ती खबर सुनी है 

सरकार कुछ राहत देगी  लगान में 

किसी अर्ज़ी देनी है, कैसे देनी है 

क्या उसे कोई राह दिखाएगा 


बिना बिचौलियों के बिक जाए फ़सल 

यही तो है मुद्दा असल 

क्या सरकारी गोदाम तक पहुंचाने की 

कोई उसको राह सुझाएगा /


Paseene ke motiyon se

Khush hali ke haar pirote hain

Taptee duphari mein

khurdaree zameen pe


Kuch pal sustate

Shikwa nahin krte kisse se

Namee ankhon mein sokh lete hain 


Ab ke baras

Ghar kee tapkatee chht kee 

Marammat ke liye 

kuch jugaadh krna hai

Bitia ke haath peele krne ka

Waqt bhee aa gaya hai

Aur bete ko aage kee padhai ke liye

Shahr bhejne ke liye bhee

 Dhan  jutana  hai

Itnee uljhno ke jaal mein uljhe

khud kee zindagi ke dhaage kaise suljhe


Sahukaar se karz na lene kee thanee.hai

Udhatee udhatee  khabar sunee hai

Sarkaar kuch raahat degi lagaan mein

kisse arzee deni  hain, kaise deni hai 

kya koi usko raah digayega


Bina bicholiyon ke bik paaye fasal

Yahi to hai mudda asal

Kya sahkari godaam tak

 Pahunchane kee

Koi usko raah sujjayega 








Monday, August 15, 2022

दीवार


 Hi! Friends, Enjoy reading this poem in Hindi as well as Roman English

दीवार

*****

घर आंगन में 

दीवार खींच जाती है 

जब दिलों में 

दरार पड़ जाती है 


बंटवारे  का दर्द 

सहती निरीह माँ 

किसके संग रहे 

जाए कहाँ 


दीवार के उस पार 

गूंजती बच्चे की किलकारी 

बढ़ने को आतुर कदम 

रोक लेती है ज़बरन 


पर क्या रोक पाएगी 

मन की उडारी 


मन के पंख लगा कर 

विचर आती है 

दीवार के उस पार 

अधजगी  रातों में 

सपने संजोये 

देती है 

निराधार जीवन 

को आधार /

Ghar aangan mein in

Deewar kheench jaati hain

Jb dilo mein

Darar padh jati hai


Bantware ka dard

Sahtee hain nireeh Maa 

kiske sang rahe 

Jayen kahaan


Deewar ke us paar

Gunjatee bachche kee kilkaree

Badhne ko aatur kadam, 

Rok leti hai jabran

Pr kya rok paaoge

Uske mn kee udaree 

Mn ke pankh laga ke

Vichr aatee hai

Deewar ke us paar 


Adhjagee raton mein 

Sapne sanjoye

Deti hai

Niradhar jeevan

 Ko adhaar 

@RAJNI CHHABRA


Saturday, August 13, 2022

Hum Rahnuma Tumhare

Hi , friends ! Enjoy reading the same poem in Hindi as well as in Roman English 

हम रहनुमा तुम्हारे

***************

सदियों से 

अडिग खड़े हैं 

राह किनारे 

मौन तपस्वी से 

सहते सहजता से 

आँधी , तूफ़ान के थपेड़े 

झुलसाती धूप 

सिहराती, ठिठुराती सर्दी 

पतझड़ और बहारें 

हर हाल में तटस्थ 

नहीं शिक़वा किसी से 

कोई संग चलने के लिए 

पुकारे या न पुकारे 


भटकते राहगीरों को 

दिशा दिखाते 

 हम मील के पत्थर 

हम रहनुमा तुम्हारे/


 Sadiyon se

 Adig khadhe hain

Raah kinaare

Moun tapasvee se

Sahte sahajata se

Aandhi, toofan ke thapede

Jhulasati dhoop

Sihrati, thithurati sardee

Patjhar aur baharen

Hr haal mein tatasth

Nahin shikwa kisse se

Koi sang chalne ke liye

Pukaare ya na pukaare


Bhatke rahgiron ka

Disha dikhate

Hum meel ke pathar

Hum rahnuma tumhare.

@ Rajni Chhabra 


Saturday, August 6, 2022

 HAPPY FRIENDSHIP DAY TO.ALL OF YOU


MILNE LAGTE HAI

JB KHYAAL.AUR JAZBAAT

NIKHREE NIKHREE 

NAZAR AATEE HAI QAYNAAT

GHULNE LAGTA HAI 



मिलने लगते हैं जब

ख्याल और जज़्बात

निखरी निखरी

नज़र आती है क़ायनात

घुलने लगता हैं

ज़िंदगी मैं

आब ए हयात


सभी मित्रों को मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ


रजनी छाबड़ा


mein to dhra hoon

धरा 
****

 मैं तो धरा हूँ 
तुमने जो बीज उपजाया 
मैने निजता से पनपाया 
फिर बेटी जन्मने का दोष 
मेरे ही सिर पर क्यो आया 

copyright@
रजनी छाबड़ा

mein to dhra hoon
Tumne jo beej upjaya
Meine nijta se panpaya
Phit beti jnmane ko dosh
Mere hee sar pr kyon aaya


Sarur


सरूर
*****

आँखों में जो


हल्का हल्का सरूर है


यह तुम्हारा


मेरी ज़िन्दगी में


 होने का गरूर है/


 Aankhon mein yeh jo

Halka halka suroor hai

Yeh tumahra meri 

zindagi mein hone ka Gurur hai

Thursday, August 4, 2022

चींटी की चाल से

 SAME POEM YOU CAN VIEW IN ROMAN ENGLISH, JUST BELOW HINDI POEM

चींटी की चाल से 

**************

परेशानी हवा के घोड़े पर सवार हो कर आती है 

और चीँटी की चाल से वापिस जाती है 

मैं  भी चींटी जैसी ही हूँ 

विषम परिस्तिथियों में भी प्रयासरत रहूंगी 

धीमी रफ़्तार से ही सही 

मंज़िल पाने का इरादा और हौंसला है 

परेशानी से जूझ ही लूंगी 

ज़िन्दगी के मैदान में 

सरपट घोड़े से चाल मुमकिन नहीं 

उम्र के इस पड़ाव पर 

धीमे धीमे मंज़िल की तरफ 

मज़बूत, सधे कदम 

बढ़ाने का हौंसला 

अभी भी साथ निभाता है मेरा 

मेरे पास पंख हैं 

सपनों की उड़ान के 

खुला आकाश अभी भी है मेरा /

 @रजनी छाबड़ा 


Preshanee hawa ke ghode pr swar ho kar aatee hai

Chhentee kee chal se wapis jatee hai


Mein bhee cheentee jaisee hee hoon 

Visham paristhiti mein bhee prayasrat rahoongee

Dheemee raftar se hee sahi 

Manzil paane ka irada aur hounsala hai 

Preshanee se joojh hee loongee

Zindagi ke maidan mein

Sarpat ghode se chaal mumkin nahi

Umar ke is padaav pr

Dheeme dheeme manzil kee taraf

Mazboot, sadhe kadam 

Badhane ka hounsala 

Abhi bhee saath nibhata hai mera.

Mere pass pankh hai

Sapnon kee udhaan ke

Khula akaash abhi bhee hai mera


Rajni Chhabra







Wednesday, August 3, 2022

तुम्हारी वसीयत

तुम्हारी वसीयत 

सहेज कर रखूँगी 
वतन की आन की ख़ातिर 
जो शौर्य की वसीयत 
तुम मेरे नाम कर गए 


मुस्कुरा कर सहूँगी 
वक़्त का हर सितम 
देशभक्ति का ज़बा 
कभी न होगा  कम 


शहादत के जो फूल 
डाले तुमने मेरे आँचल में 
उनकी खुशबू से
 महकेगा वतन 


मैं ही जीजाबाई 
मैं ही अमर सिंह राठौड़ की माँ 
लोरी की जगह 
सुनाऊँगी बेटों को 
शहादत की दास्तान 


फिर से आँच आई 
ग़र देश की आन पर 
और माँगा 
धरती माँ ने बलिदान 
वतन की शान पर 
कर दूँगी हॅंसते हॅंसते 
अपने लाडले क़ुर्बान 


जो जान देते हैं 
वतन की राह पर 
छोड़ जाते हैं 
क़ुरबानी के 
नक़्श-ए -पाँ 
जिन पर चल कर 
नयी पीढी रखती क़ायम 
आज़ाद वतन, आज़ाद जहान 


रजनी छाबड़ा 

Tuesday, August 2, 2022

बहती नदिया

Friends,you can view same poem in Roman  English, just below Hindi poem


बहती नदिया 

***********

कल कल बहती नदिया 

अपनी धुन में गुनगुनाती 

इठलाती, मुस्कुराती 

बहे जा रही थी 


मैंने  उसे रोका और टोका 

इतनी उतावली क्यों हो 

कहाँ जाने का इरादा है 

क्या किसी से कोई वादा है 


नदिया कुछ झिझकी 

सिकुची, शरमाई 

सागर से मिलने की आस है 

यही मेरी रवानगी का राज़ है 


मैंने चेताया  उसे 

क्या सोचा हैं तुमने  कभी 

सागर से मिल कर 

 खो देगी तुम निजता 

अपनी मिठास 

सहजता और सरसता 


पर उस प्रेम दीवानी ने 

नहीं रोकी अपनी रवानी 

मिठास का गुण खो दिया 

ख़ारे पानी में विलीन हो गया 

सागर की आगोश में जाने के बाद 

और ख़तम कर ली अपनी रवानी 

अपनी ज़िंदगानी 

रजनी छाबड़ा 


Kl kl bahtee nadia

Apnee dhun mein gungunati

Ithlatee, muskurati

Bahe Jaa rhee thee


Maine usko roka aur toka 

Itnee utawali kyon ho

Kahan Jane ka irada hai

Kya kisee se koi vada hai


Nadia kuch jhijhaki

Sikuchee, sharmayee

Sagar se milne kee aas hai

Yahi meri rawangee ka raaz hai


Maine chetaya usko

Kya socha hai tumne kabhi

Sagar se mil kr 

Kho dogi tum nijtaa

Apnee mithaas

Sahjata aur sarasta


Pr us Prem deewani

Ne nahi roki apnee rawani

Mithaas ka goon kho diya

Khare panee mein vileen ho gaya

Sagar kee aagosh mein  jane ke baad  

Aur khatam kr lee apnee rawani 

Apnee zindganee.

Rajni Chhabra 


























 








दर्द का बिछौना

 Posting the poem both in Hindi as well as Roman English 



दर्द का बिछौना 

************

दर्द का बिछौना 

दर्द का ओढ़ना 

कैसे बीते कराहती रात 

नहीं दर्द से निज़ात 


सुकून के एक पल के लिए 

तरसती करवट 

घुटने का दर्द 

पार कर रहा 

बर्दाश्त की हद 


फिर भी 

कोशिश करती हूँ 

नींद को आँखों में 

पिरोने की 

क्योंकि कसम खायी है 

कभी न रोने की 


दर्द को शब्दों में 

बहा देती हूँ 

कुछ इस तरह से 

सुकून पा लेती हूँ 


शायद दर्द ख़ुद 

अपनी दवा बन जाये 

रजनी छाबड़ा 



Dard ka bichhona

Dard ka odhna hai

Kaise biten

karahati raat

Nahin dard se nizaat

Sukoon ke ek pal ke liye

Tarsati  karwat

Ghutane ka dard

Paar kr rha

Bardasht kee hd



Phir bhee

koshish krtee hoon

Neend ko 

Abkhon mein 

Pirone kee

kyonki kasam khayee hai

kabhi na rone kee

Dard ko shabdon mein

Baha deti hoon

kuch is tarah se

Sukoon paa leti hoon


Shayad dard

Khud apnee dawa 

Bn jaye


Rajni Chhabra











Monday, August 1, 2022

कवि

Friends! You can enjoy reading this poem ,both in Hindi and in Roman English in same post.


कवि 

*****

जो दूसरों के दर्द को 

निजता से जीता है 

भावनाओं और संवेदनाओं को 

शब्दों में पिरोता है 

वही कवि कहलाता है 


फ़ूल के भौतिक गुण -आकार 

जिस मिट्टी, खाद, पानी से 

हैं पनपता 

का बखान करना 

जीव-विज्ञानी को है आता 

फ़ूल की  ख़ुशबू और रंग 

के बखान से है 

कवि का प्यारा सा नाता 


जो मारे गए 

आततायिओं के दंगे-फ़सादों में 

कितने घर जले 

कितनी तबाही मची 

कितनी ज़िन्दगियों का हुआ अंत 

हर सुबह, हर शाम 

यह आंकड़ें रखना है 

सरकार और मीडिया का काम 

कितने निर्दोषों की ज़िंदगी 

हुई तबाह 

सुनना समझना उनकी 

सिसकियाँ और आहें 

उनकी व्यथा उकेरना 

अपनी रचनाओं में 

यही कवि का गहन दायित्व 

यही हैं उसके 

होने की पहचान 


रजनी छाबड़ा 





Jo doosron ke dard ko 

Nijata se jeeta hai

Bhavon aur samvednaon  ko

 Shabdon mein

Pirota hai 

Vahi kavi kahlata hai



Phool ke bhoutik goon

aakaar 

Jis mitteee

 Khaaad,pani se

Hai ugta

Ka bakhaan krna 

Jeev -vigyanee Ko hai aata

Phool ke rang aur

khushboon ke bakhaan se

Hai kavi ka pyaara nata


Jo maare gaye

Aattayiyon ke dange-fasadon mein

Kitne ghar jale, kitnee tabahi machi, 

kitnee Zindagiyon ka hua ant

Hr din, hr shaam 

Yeh aankaden rakhna hai

Sarkar aur media ka kaam

Kitne nirdoshon kee zindagi 

Hui tabaah

Sunana, samjhna unki

Siskiyaan aur aahen

 Unkee vyathaa ukerna

Aaaht mn se 

Apnee rachnaon mein

Yeh kavi ka gahan dayitv

Yehi hai uske 

Hone kee pahchaan.

Rajni Chhabra














Sunday, July 31, 2022

बिन बुलाये मेहमान सरीखा

 Friends! You can view this poem, both in Hindi and in Roman English in the same post


बिन बुलाये मेहमान सरीखा 

**********************

दर्द बिन बुलाये मेहमान सरीखा 

घर  में  कर  जाता हैं बसर 

अपनी मर्ज़ी  से आता जाता है 

झुकना पड़ता है 

उसकी रज़ा  के आगे 

उलझ  जाते  हैं 

ज़िंदगी के धागे 

बदल जाता है 

जीने  का अंदाज़

जब दर्द दस्तक देता है 

बेआवाज़ 


रजनी छाबड़ा 



Monday, June 6, 2022

कहीं किसी ख़याल में वो बे-ख़याल नहीं होता,
मेरे ख़याल में रहता है बस वही एक ख़याल बनकर...!!

Saturday, April 23, 2022

सपनों का घर

 

सपनों का घर 


आसान नहीं 

सपनों का घर बनाना 

तिनका तिनका जोड़ कर 

बनता है आशियाना 


वक़्त की आँधियों से 

बचाए रखना इसे 

मुमकिन तभी है 

जब दुआ शामिल हो 

अपनों की 

और रज़ा हो 

दुनिया  के

पालनहार की /


रजनी छाबड़ा 

कवयित्री व् अनुवादिका 

 सिमटते पँख


पर्वत, सागर, अट्टालिकाएं
अनदेखी कर सब बाधाएं
उन्मुक्त उड़ने की चाह को
आ गया है
खुद बखुद ठहराव

रुकना ही न जो जानते थे कभी
बँधे बँधे से चलते हैं वहीँ पाँव

उम्र का आ गया है ऐसा पड़ाव
सपनों को लगने लगा है विराम
सिमटने लगे हैं पँख
नहीं लुभाते अब नए आयाम


बँधी बँधी रफ़्तार से
बेमज़ा है ज़िंदगी का सफ
अनकहे शब्दों को
क्यों न आस की कहानी दे दें
रुके रुके क़दमों को
फिर कोई रवानी दे दें /

 कहाँ गए सुनहरे  दिन
 **********************
कहाँ गए सुनहरे  दिन 
जब बटोही सुस्ताया करते थे 
पेड़ों की शीतल छाँव में 

कोयल कूकती थी 
अमराइयों में  
सुकून था गावँ में 

कहाँ गए संजीवनी दिन 
जब नदियां स्वच्छ शीतल 
जलदायिनी थी 

शुद्ध हवा में  सांस लेते थे हम 
हवा ऊर्जा वाहिनी थी /

रजनी छाबड़ा 
बहुभाषीय कवयित्री व् अनुवादिका 


टावर 6  A , 1601 
वैली व्यू एस्टेट 
ग्वाल पहाड़ी 
गुरुग्राम फरीदाबाद हाईवे 
गुरुग्राम -122003 

Tuesday, April 19, 2022

अनुसृजन: साहित्यिक और सांस्कृतिक अनुष्ठान

 अनुसृजन: साहित्यिक और सांस्कृतिक अनुष्ठान

साहित्य सृजन मन के भावों को उकेरने का माध्यम है और अनुवाद इन भावात्मक छवियों को अपनी भाषा के शब्द शिल्प में बांधकर और विस्तार देने का सशक्त साधन/
लेखन में भावाभिव्यक्ति जब दिल की गहराईयों से उतरती है, भाषा और प्रदेश के बंधन तोड़ती हुई, सुधि पाठकगण के मन में गहनता से स्थान बना लेती है/ यहाँ मैं यह बात अपने हिंदी काव्य संग्रह पिघलते हिमखंड के सन्दर्भ में भी कह रही हूँ/ इस काव्य कृति की चुनिन्दा कविताओं के नेपाली, बंगाली, पंजाबी, राजस्थानी, मराठी, गुजराती में अनुवाद की श्रृखला में एक विशिष्ट कड़ी जुड गयी है; सम्पूर्ण काव्य संग्रह का मैथिली अनुवाद और यह सराहनीय अनुसृजन डॉ.शिव कुमार, एसोसिएट प्रोफेसर हिंदी, पटना विश्व विद्यालय के अथक प्रयासों का परिणाम है/
व्यक्तिगत रूप से डॉ शिव कुमार से कोई परिचय नहीं था/ फेसबुक की आभासी दुनिया के माध्यम से जान पहचान हुई/ मैंने आज तक अपने प्रथम हिंदी काव्य संग्रह होने से न होने तक के अलावा अपनी अन्य मौलिक और अनुसृजित काव्य कृतियों का कभी भी औपचारिक लोकार्पण नहीं करवाया/ सोशल मीडिया पर ही पाठक गण को अपनी कृतियाँ लोकार्पित किया करती हूँ/ बहुत से साहित्यिक प्रवृति के मित्रों व् प्रकाशकों से परिचय हुआ फेसबुक के माध्यम से/ डॉ.शिव ने भी मेरी कुछ रचनाएँ फेसबुक पर देखी, जिन में से पिघलते हिमखंड की रचनाएँ उन्हें काफी पसंद आयी और उन्होंने इस काव्य संग्रह की मैथिली में अनुवाद करने की इच्छा जतायी, जिसे मैंने सहर्ष स्वीकारा/ यह उनकी निष्ठा और कार्य के प्रति समर्पण का ही फल है की इतने अल्प समय में इतना प्रभावी अनुसृजन हो पाया है/ मूल रचनाकार के मनोभावों को आत्मसात करना और उस में अपनी भाषा में अभिव्यक्त करते हुए शोभा में वृद्धि करना कोई आसान काम नहीं है; परन्तु डॉ शिवकुमार से इस अनुवाद कार्य को बहुत सहजता से सम्पन्न किया/
यदि आप इन कविताओं को मैथिली में पढेंगे तो ऐसा आभास होगा जैसे कि यह मूलतः मैथिली में ही लिखी गयी हों/ यह अनुसृजनकर्ता की अत्यन्त प्रशंसनीय उपलब्धि है/ कुछ चुनिन्दा रचनाओं का आनन्द आप भी लीजिये, मूल हिंदी और अनुदित मैथिली रचना
मधुबन
कतरा
कतरा
नेह के
अमृत से
बनता पूर्ण
जीवन कलश
यादों की
बयार से
नेह की
फुहार से
बनता जीवन
मधुबन
मधुबन
बुन्न बुन्न
नेहक अमिय सँ
जिनगीक घैल
भरैत छै।
स्मृतिक
बसात आ
नेहक फुहार सँ
बनैत छै
जिनगीक मधुबन।
यह कैसा सिलसिला
कभी कभी दो कतरे नेह के
दे जाते हैं सागर सा एहसास
कभी कभी सागर भी
प्यास बुझा नहीं पाता
जाने प्यास का यह कैसा है
सिलसिला और नाता/
'"ई केहन अनुक्रमण"
कखनहुँ तऽ नेहक दू बुन्न
दऽ जाएत छै सिन्धु सन तोष
कखनहुँ समुद्रो
पियास नहि मेटा पबैत छै
नै जानि पियासक ई केहन
अनुक्रमण आ नाता छै !
क्या जानें
बिखरे हैं आसमान में
ऊन सरीखे
बादलों के गोले
क्या जाने, आज ख़ुदा
किस उधेड़ बुन में हैं/
की जैन
छितराएल छै अकाश मे
ऊँन सन
मेघक ढेपा
की जैन आइ परमतमो
कोन गुण धुन मे लागल छैथ !
मैथिली अनुवाद सुधि पाठकों को सौंपते हुए, प्रभु से कामना करती हूँ कि डॉ शिव कुमार की अनुदित कृति साहित्य जगत में विशिष्ट पहचान बना पायें/ हृदय से आभरी हूँ अनुसृजनकर्ता की जिनके माध्यम से मेरे हिंदी काव्य संग्रह पिघलते हिमखंड को साहित्यिक रूप से समृद्धभाषा मैथिली में विस्तार मिल रहा हैं/ इस काव्य गुच्छ की सुरभि कहाँ कहाँ पहुँची, जानने की उत्सुकता और आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी/
रजनी छाबड़ा
बहुभाषीय कवियत्री व् अनुवादिका
गुरुग्राम
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