प्रस्तावना : बात सिर्फ इतनी सी
सपनों का वितान और यादों का बिछौना/ नहीं रहता इनसे अछूता/ मन का कोई भी कोना/
जीवन की छोटी छोटी खुशियाँ और यादों के मधुबन हमारी अमूल्य निधि हैं/ रिश्तों की गरिमा, अपनों का सानिध्य, अस्तित्व की पहचान और सौहार्द पूर्ण सह-अस्तित्व यही तो ताने -बाने हैं हमारे सामाजिक परिवेश के/ यदि यही सामजिक ताना -बाना तार-तार होने के कगार पर हो, कवि का संवेदनशील मन अछूता कैसे रह पायेगा/ यही अनुभूतियाँ कलमबद्ध करने का प्रयास किया है, अपनी काव्य-कृति 'बात सिर्फ इतनी सी' के माध्यम से/
बचपन से लेकर उम्र के आख़िरी पड़ाव तक का सफर, बहुआयामी चिंताएं, अन्याय, उत्पीड़न, नगरीकरण का दबाव, अपनी माटी की महक, जीवन मूल्यों के प्रति निष्ठा, संस्कारों के प्रति आस्था, अबोले बोल और आकुलता ऐन्द्रिय धरातल पर कुछ बिम्ब बनाते हैं/ इन्हे शब्दों का रूप दे कर उकेरा है/
जो दूसरों के दर्द को
निजता से जीता है
भावनाओं और संवेदनाओं को
शब्दों में पिरोता है
वही कवि कहलाता है
Wish your book wind hearts of many!@rajani chabra.
ReplyDeleteHeartily obliged for your well wishes
ReplyDeleteSharing comment of Ram Sharan Agarwal Ji, reputed critic from Sitamarhi
ReplyDeleteआपने कोशिश ही नहीं की है आपने अपनी संवेदना में वेदना को धारण किया है।
अनंत हार्दिक शुभकामनाएँ
Hardik abhaar, Agarwal Ji
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