Sunday, February 20, 2022

राजस्थानी कविताओं का हिंदी अनुवाद

 सृजन कुंज समकालीन राजस्थानी कविता केंद्रित अंक हेतु 

राजस्थानी कविताओं का हिंदी अनुवाद

मूल कवि : स्व. ओम पुरोहित कागद
अनुवादिका : रजनी छाबड़ा


प्रीत ■■■ उमर गाळ दी एक सबद नीं सीख्यो बो जिको हो प्रीत पण फेर भी आखी-आखी रात फोरतो पसवाड़ा रोवतो अर कैंवतो काळजै रड़कै प्रीत ठाह नीं किंया सीख्यो !

जीवन बिता दिया सारा
एक शब्द नहीं सीख पाया
जिसे कहते हैं प्रेम
पर फिर भी
पूरी पूरी रात
बीतती है
करवटें बदलते
सुबकता हूँ
सिसकता हूँ
और कहता हूँ
मेरे दिल में
उठती है हुक
अनजाने ही
कैसे सीख गया मैं
प्रीत


प्रीत री देवळ्यां
■■■■■■■■ प्रीत तो थारै सूं ही मोरचै पण पेट सारू हो छेकड़ मोरचो जीत्यो पेट हारया हारी प्रीत ई पण होयगी अमर अब गाईजसी करोड़-करोड़ मुंडां सावळ देख अदेही आपणी रूह में है प्रीत री देवळ्यां !

प्रीत का देवालय
**************
प्यार तो बेशक
तुमसे ही करता था
पर प्रमुखता थी
रोज़ी रोटी कमाना
पेट की भूख
रही हावी
प्यार हुआ धराशायी

हार कर भी जीतेगी प्रीत
हो जाएगी अमर
करोड़ों स्वर मुखर हो जायँगे
गाएंगे प्रीत के गीत
अदृश्य दिखाई देगा
देखेंगे सभी
हमारी आत्मा में बसा.
प्रीत का देवालय
थांरी आंख्यां में म्हारा सुपना
■■■■■■■■■■■■■■■
आपां साथै-साथै चाल्या
साथै ई देखी जगती
इकसार देख्या जग रा चाळा
मन तो पण दोय हा
थूं कीं न्यारो सोच्यो होसी म्हांसूं
थूं पूछती रैई म्हारा सुख-दुःख
म्हनै तो फुरसत ई नीं ही
म्हारा सुपना पूरण सूं
म्हैं तो बधा ई लियो म्हारो बंस
थूं बैठी है आज मून
अंतस में लियां अंधारो
थांरी आंख्यां रा काच पड़ग्या मांदा
थांरै सुपना रो पछै काईं होयो
आव म्हैं सोधू थांरी आंख्या में
थांरा अणपाक्या सुपना
पण ओ काईं !
थांरी आंख्यां में भी
म्हारा ई सुपना !

तुम्हारी आँखों में बसे मेरे सपने 
*******************************
हम संग संग चले 
साथ साथ ही देखी यह दुनिया 
और देखी दुनिया की चालें 
पर हम दोनों के दिमाग तो 
भिन्न हैं एक दूजे से 
स्वाभाविक ही है 
सोचने का अंदाज़ भी भिन्न 
तुम पूछती ही रही 
मेरा कुशल-क्षेम 
और मुझे तो 
कभी फुरसत ही न रही 
जुटा रहा अपनी धुन में 
अपने सपनों 
को सच करने  में 
मैंने तो पनपा  ही लिया 
मेरा वंश 

तुम आज मौन हो 
अँधेरे को अंतस में समेटे 
तुम्हारी दृष्टि भी 
धुंधलाने लगी अब 
तुम्हारे सपनों का क्या हुआ 
मुझे तलाशने तो दो 
तुम्हारी आँखों में 
तुम्हारे अधूरे सपने 
पर यह क्या ? 
विस्मित हूँ 
देख कर तुम्हारी 
आँखों में  रचा -बसा 
मेरा ही सपना !




भटके राही

 


भटके  राही 

******** 

भटके राही 

राह पूछ लिया करते थे 

 राह चलते 

अजनबी लोगो से 

और वे भी ख़ुशी ख़ुशी 

वक्त निकाल लेते थे 

राह दिखाने को 



अब कोई किसी का 

पथदर्शक नहीं बनता 

न कोई पूछता है 

न कोई बताता है 

सब का अब 

ख़ुद से ही नाता है 


किसी भी अनजान राह पर 

अनजान शहर में भटक जाएँ

गुम हो जाने का नहीं डर 

गूगल मैप सब का रखवाला 

भटकों को राह दिखाने वाला