Thursday, December 11, 2014

नासूर

नासूर

मन और् आँखों
 के बीच
गहरा  रिश्ता है

मन का नासूर
आँखों से
अश्क बन
रिसता है/

रजनी छाबड़ा 
कस्तूरी मृग
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कस्तूरी की गंध
खुद मैं समेटे
भ्रमित भटक रहा था
कस्तूरी मृग

आनंद का सागर
खुद में  सहेजे
कदम बहक रहे थे
दसों दिग़