Monday, December 13, 2021


आदरणीय वरिष्ठ प्रख्यात साहित्यकार मेवाड़ रतन देवकिशन राजपुरोहित जी के विचार मेरे सद्य प्रकाशित काव्य संग्रह ' आस की कूंची' के बारे में सभी सुधि पाठकों के साथ साझा करते हुए हर्षित हूँ/

 

आस की कूंची से

देकिरापु

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रजनी छाबड़ासभी सुधि पाठकों के साथ कविता के क्षेत्र में जाना पहचाना नाम है और वे लंबे समय से स्वांत सुखाय लिखती रही हैं।सुनाती रही हैं और सुनती रही हैं।उनकी कविताएं ही ऐसी हैं कि उनको पढ़ना अपने आप में आनंद विभोर कर देने वाला है।यही कारण है कि उनके प्रशंसकों ने  मांग की ओर उनकी तीन कृतियों का प्रकाशन हो गया।

आस की कूंची से शीर्षक कविता संग्रह पढ़ने  बैठा तो पड़ता ही गया कब कितना समय  बीता पता ही नहीं चला।

एक महिला की कविताओं से रूबरू होना महिला जगत की अबखाइयो और वास्तविकता के निकट जाने जैसा लगा।इनकी कविताओं में आदर,प्रेम,विछोह,नारी की दशा और दिशा का दिग्दर्शन होता है।एक महिला का नाम राजभाषा और उसका अंगूठा लगाना वास्तव में नारी की शैक्षिक स्थितियों का वर्णन है वहीं उनका बेगाने कविता में अपनी ही तस्वीरों में बेगाने नजर आना एक गहरी पीड़ा को दर्शाता है।सांस लेने में और जीने में बहुत फर्क है में उन्होंने अश्कों को पीने तक की बात कहदी याने दर्द को पी जाना।प्रकट न होने देना।वे यमराज को भी तब तक रुकने का अनुरोध अपनी कविता में करती हैं क्योंकि जिंदगी के कुछ पेचीदा काम सुलझाने हैं।

कहने को तो इस पुस्तक पर बहुत कुछ कहा जा सकता है।छोटी छोटी मार्मिक रचनाओं में इन्होंने मर्म को बहुत ही सलीके से प्रकट किया है ठीक उसी प्रकार जेसे  नाविक के तीर।

कवियत्री अंग्रेजी की विदुषी हैं।अनेक कार्य इनके नाम के साथ जुड़े हुए है ऊपर से तुर्रा यह कि ये आकाशवाणी पर महिलाओं के कार्यक्रमों की बहुत लम्बे समय तक वाचक रहीं है फिर अंक ज्योतिष की भी बड़ी ज्ञाता है।कहने का तात्पर्य ये वन इन आल हैं।

रजनी छाबड़ा निरंतर कलम की कारीगरी यश अर्जित करें।

शुभाकांक्षी

देकिरापु


 आस की कूंची से

देकिरापु

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रजनी छाबड़ा कविता के क्षेत्र में जाना पहचाना नाम है और वे लंबे समय से स्वांत सुखाय लिखती रही हैं।सुनाती रही हैं और सुनती रही हैं।उनकी कविताएं ही ऐसी हैं कि उनको पढ़ना अपने आप में आनंद विभोर कर देने वाला है।यही कारण है कि उनके प्रशंसकों ने  मांग की ओर उनकी तीन कृतियों का प्रकाशन हो गया।

आस की कूंची से शीर्षक कविता संग्रह पड़ने बैठा तो पड़ता ही गया कब कितना समय बिता पता ही नहीं चला।

एक महिला की कविताओं से रूबरू होना महिला जगत की अबखाइयो और वास्तविकता के निकट जाने जैसा लगा।इनकी कविताओं में आदर,प्रेम,विछोह,नारी की दशा और दिशा का दिग्दर्शन होता है।एक महिला का नाम राजभाषा और उसका अंगूठा लगाना वास्तव में नारी की शैक्षिक स्थितियों का वर्णन है, वहीं उनका बेगाने कविता में अपनी ही तस्वीरों में बेगाने नजर आना एक गहरी पीड़ा को दर्शाता है।

 

 कवयित्री व् अनुवादिका रजनी छाबड़ा से नीलम पारीक का संवाद

दिनांक - 15 दिसंबर 2021 बुधवार,शाम -07:00 बजे से 08:00 बजे तक

https://www.youtube.com/watch?v=lzAYR6ovtKs

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