जड़ा नाल रिश्ता,(सिरायकी भाषा) की सठ कवितावां दा संकलन, इसकी कवयित्री हैं सुप्रसिद्ध न्यूमरोलाजिस्ट और पंजाबी,राजस्थानी,नेपाली और हिंदी भाषा की अंग्रेजी में अनुवादिका , आदरणीया बहन Rajni Chhabra ji । आप एक प्रसिद्ध ब्लागर हैं रेडियो टेलीविजन से प्रायः कार्यक्रम आते रहते हैं।
सिरायकी एक बहुत प्यारी मीठी भाषा ये भारत की पंजाबी से सिंधी से मिलती जुलती भाषा है। अधिकांशतः यह मुलतान में बोली जाती है जिसके लगभग 28 लाख से भी अधिक बोलने वाले हैं...
मुलतः यह इंडो आर्यन परिवार की भाषा है यह भारतीय उपमहाद्वीप के पूर्वी हिस्से में बहुत जनप्रिय है।
ये फारसी,अरबी, संस्कृत, और उर्दू मिश्रित है। इस काव्य संग्रह की भूमिका सुप्रसिद्ध कवयित्री डा0 अंजु दुआ जेमिनी ने लिखी है।
इसका संपादन सिरायकी के विशेषज्ञ वरिष्ठ लेखक और चिन्तक श्री चन्द्र भानु आर्य जी ने किया है।
Moosa Ashant
Barabanki
वास्तव में ये कविताएं अपनी भाषा /मिट्टी से बिछड़ जाने की पीडाओ की उपज है , जिसे कवयित्री ने बहुत ही अनोखे ढंग से प्रस्तुत किया है।
सिरायकी की एक छोटी मीठी कविता यूँ पढ़िये ...
जे मेंकूँ रोक सकें, रोक घिन
मैं हवा दे झोंके वांगु हाँ
ख्यालां दी पतंग वाकण
बारिश दी पलेठ बूंदां वाकण
सूरज दी मधरी धुप्प
चंद्रमा दी ठंकक वाकण
ऐसे ही अनेक प्यारी प्यारी दर्द से डूबी, भावों से भरी रचनाओं का महत्वपूर्ण गुलदस्ता है।
मुझे यह कल मिला सारी रचनाओं को पढ़ गया। सभी रचनाओं में आनन्द है,पीड़ा है, भाव है, एक अलग कथा है । कवयित्री जो कहना चाहती है उसको सरलतम ढंग से कह सकी है। यही काव्य संग्रह की विशेषता है। आप भी इस भाषा की रचनाओं को पढ़िये... हिंदी रचना संसार इन कविताओं का अवश्य और इस जबान को प्यार देगा।
इस भाषा के गीतों को कभी सुना था रेडियो मुलतान से आज इसको पढ़ने को भी राजेन्द्र नगर दिल्ली से छपकर आयी इस पुस्तक से एक बार रूबरू होने का अवसर मिला। बधाई ,शुभकामनाएं। हिंदी,अंग्रेजी,राजस्थानी के साथ सिरायकी में भी आप लिखती रहें यही कामना।