Wednesday, August 19, 2009

आब-ऐ-हयात

मिलने
लगते हैं

जब ख्याल
 और जज़्बात
निखरी निखरी
नज़र आती है
कायनात
घुलने लगता है
ज़िन्दगी मैं
आब-ऐ-हयात

एहसास

एहसास जिंदा हैं तो
ज़िन्दगी है
वक्त के आँचल
मै समेटे
लम्हा लम्हा एहसास
खुदा की बंदगी हैं