Wednesday, February 5, 2020

जी रही हूँ मैं?

जी रही हूँ मैं?

ऐ हवाओं ,ऐ फिजाओं
मुझे, मेरे होने का
एहसास दिलाओ

साँस ले रही हूँ मैं,
अपने जिंदा होने का
यकीन नहीं
क्या ज़िंदगी के ख़िलाफ़
यह जुर्म संगीन नहीं

एक पल में  जी लेना
एक जनम
हर धडकन में 
संगीत की धुन
हर स्पंदन में 
पायल की रुनझुन
रेशमी आंचल का
हौले से सरसराना
निगाहों से निगाहों में 
सब कह  जाना
बिन पंखों के
आकाश नापना

पूर्णता का अहसास
सब,ख्वाबों की बात हो गया
रीते लम्हे ,रीता जीवन
जीवन तो बस, बनवास हो गया

सौंधी यादों के उपवन
फिर महकाओ
ऐ हवाओं,ऐ फिज़ाओं
मुझे मेरे होने का
एहसास दिलाओ
 @रजनी छाबड़ा