Thursday, September 10, 2009

प्रेहेरी

आँख भेर आयी
निगाह
गहरी
और गहरी हुई
एक सागर
प्यार का
उमड़ आया
अंतस के
अछोर क्षितिज

तभी जगा
मन मैं
यह भय
तिरोहित न
हो जाए
खुली आँख का
स्वपन
और बस
झुक गई पलकें

किस खजाने की
भला
यह प्रेहेरी हुई

पूर्णता की चाह मैं

या खुदा!
थोड़ा सा अधूरा रहने दे
मेरी ज़िन्दगी का प्याला
ताकि प्रयास जारी रहे
उसे पूरा भरने का

जब प्याला
भर जाता है लबालब
भय रहता है
उसके छलकने का
बिखरने का
जब प्याला
रहता है अधूरा
प्रयास रहता, उसमे
कुछ और कतरे
समेटने का

जो जूनून
पूर्णता
पाने के प्रयास मैं है
वो पूर्णता मैं कहाँ

लबालब प्याले मैं
और भेरने की
गुन्जायिश नही
रहती ज़िन्दगी से
और कोई
ख्वाहिश नहीं

पूर्णता बना देती
संतुष्ट और बेखबर
पूर्णता की
चाह करती
प्रयास को मुखेर

मुझे थोड़े से
अधूरेपन मैं ही जीने दे
घूँट घूँट ज़िन्दगी पीने दे
सतत प्रयासशील
ज़िन्दगी जीने दे