Expression
Thursday, September 10, 2009
प्रेहेरी
आँख भेर आयी
निगाह
गहरी
और गहरी हुई
एक सागर
प्यार का
उमड़ आया
अंतस के
अछोर क्षितिज
तभी जगा
मन मैं
यह भय
तिरोहित न
हो जाए
खुली आँख का
स्वपन
और बस
झुक गई पलकें
किस खजाने की
भला
यह प्रेहेरी हुई
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