Friday, June 5, 2015

कहाँ गए

कहाँ गए

कहाँ गए सुनहरे  दिन
जब बटोही सुस्ताया करते थे
पेड़ों की शीतल छाँव  मैं

कोयल कूकती थी
अमराइयों मैं
सुकून था गावँ में


कहाँ गए संजीवनी दिन
जब नदियां स्वच्छ शीतल
जलदायिनी थी

शुद्ध हवा मैं सांस लेते थे हम
हवा ऊर्जा वाहिनी थी

रजनी छाबड़ा