Tuesday, October 4, 2022

बहता मन


बहता मन



बहता मन , ठहरा तन 
जीवन अजब उलझन 

चाहता मन , उन्मुक्त धड़कन 
निभाता तन, संस्कारों की जकड़न 

बहता मन, ठहरा तन 
जीवन अजब उलझन 

रजनी छाबड़ा 
अप्रैल 2 , 2004 

बयार और बहार







बयार और बहार 
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सिर्फ़ बयार से ही आती है 
चमन में बहार 
ग़र सोचते हो ऐसा 
करते हो भूल 

वक़्त के थपेड़े 
खा कर भी 
केक्टस में 
खिलते हैं फ़ूल 

रजनी छाबड़ा 
मार्च 5, 2015