Saturday, April 23, 2022

सपनों का घर

 

सपनों का घर 


आसान नहीं 

सपनों का घर बनाना 

तिनका तिनका जोड़ कर 

बनता है आशियाना 


वक़्त की आँधियों से 

बचाए रखना इसे 

मुमकिन तभी है 

जब दुआ शामिल हो 

अपनों की 

और रज़ा हो 

दुनिया  के

पालनहार की /


रजनी छाबड़ा 

कवयित्री व् अनुवादिका 

 सिमटते पँख


पर्वत, सागर, अट्टालिकाएं
अनदेखी कर सब बाधाएं
उन्मुक्त उड़ने की चाह को
आ गया है
खुद बखुद ठहराव

रुकना ही न जो जानते थे कभी
बँधे बँधे से चलते हैं वहीँ पाँव

उम्र का आ गया है ऐसा पड़ाव
सपनों को लगने लगा है विराम
सिमटने लगे हैं पँख
नहीं लुभाते अब नए आयाम


बँधी बँधी रफ़्तार से
बेमज़ा है ज़िंदगी का सफ
अनकहे शब्दों को
क्यों न आस की कहानी दे दें
रुके रुके क़दमों को
फिर कोई रवानी दे दें /

 कहाँ गए सुनहरे  दिन
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कहाँ गए सुनहरे  दिन 
जब बटोही सुस्ताया करते थे 
पेड़ों की शीतल छाँव में 

कोयल कूकती थी 
अमराइयों में  
सुकून था गावँ में 

कहाँ गए संजीवनी दिन 
जब नदियां स्वच्छ शीतल 
जलदायिनी थी 

शुद्ध हवा में  सांस लेते थे हम 
हवा ऊर्जा वाहिनी थी /

रजनी छाबड़ा 
बहुभाषीय कवयित्री व् अनुवादिका 


टावर 6  A , 1601 
वैली व्यू एस्टेट 
ग्वाल पहाड़ी 
गुरुग्राम फरीदाबाद हाईवे 
गुरुग्राम -122003