Friday, February 18, 2022

बोतलबंद पानी


 बोतलबंद पानी 

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निर्मल, शीतल जल की वाहिनी 

हुआ करती थी नदियाँ 

उस जल की मिठास 

भुलाये नहीं भूलती 


राहगीरों के लिए 

प्याऊ लगाए जाते थे 

नहीं मिलता अब 

स्नेह पगा गुड़ धानी 

और बेमोल पानी 


बदले परिवेश 

आ गया है 

बोतलबंद पानी 

मोल दो और पी लो 

नए दौर की 

यही कहानी


पिता ऐसे होते हैं.


 

पिता ऐसे होते हैं

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स्वछन्द विचरते हो 

जब तुम पतंग सरीखे 

सपनों के खुले आकाश में 

पिता थामे रखते हैं डोर 


तुम्हारी  हर सफलता पर 

उनकी खुशी का 

नहीं रहता कोई छोर 

हो जाते हैं पुलकित, विभोर 


भूल हो जाये तुम से अगर 

सुधारने को रहते तत्पर 

तराशी गई  ईमारत तुम 

पिता नींव  का पत्थर 


रजनी छाबड़ा 

बहु-भाषीय कवयित्री व् अनुवादिका