Sunday, June 22, 2025

खिलौनों सरीखे

 खिलौनों सरीखे 



या! खुदा 
हर घर में  
खिलौनों सरीखे 
बच्चे दे 
और बच्चों को खिलोने दे 

सुख की नींद 
और बिछौने दे 
ममता की छाँव 
और सपने सलोने दे 


किलकिलाते रहें 
खिलखिलाते रहे
आँखों में आसूँ 
न कभी होने दे  

समंदर पर आधारित कुछ कवितायेँ

समंदर पर आधारित कुछ कवितायेँ 

1. अछोर 

.2. प्रभुता की प्यास 

3. इतना इतराया  मत करो

4. समुद्र तट पर 
 
5.  सागर आज भी वही है 

 6. आकाशदीप 

7 . रेत के समंदर से 

 



 1अछोर 

   *****

 क्षितिज़ सा अछोर 

कभी संदली  बयार सा 

कभी सावनी फुहार सा 

कभी शोख़ बहार सा  इतराता 

रुपहली किरणों से भरा 

चांदनी में नहाया 

कभी अँधेरे को अंतस में समेटे 

नागिन सा  बल खाता , लहराता 

अपनी धुन में मग्न 

दुनियावी दस्तूरों से विमुख 

हिचकोले , हिलोरे लेता 

रेत सरीख़े फ़िसलते लम्हों 

ख़्वाबों और ख्यालों का 

एक समन्दर 

मेरे अन्दर/


2. प्रभुता की प्यास 

    ************

अनगिनत नदियाँ 

खो कर अपनी मिठास 

गवां कर निज पहचान 

समा चुकी तुम्हारी आगोश में 

फिर भी शांत नहीं रहते हो तुम 

कब थमेगा यह उफ़ान 

अतृप्त क्यों रहते हो 

 सागर! तुम में अभी भी 

प्रभुता की 

बची कितनी प्यास है /



3. समुद्र तट पर 

    **********

नीले खुले आसमान तले 

मंद मंद बयार का आनंद लेते 

समुद्र तट पर 

सीपियाँ, शंख बटोरते 

अजीब से खुशी मिलती है 

क़ुदरत  के ख़ज़ाने  से 

कुछ मिलने का एहसास /


अपनी कल्पना शीलता से 

रेत के घरौंदे बनाते 

और उस पर अपना नाम उकेरते 

मासूम बच्चे, खिलखिलाते 

पुलकित होते देख 

सागर का विस्तार 


अगले ही क्षण 

तट से टकराती लहरें 

बहा कर  ले जाती 

उनके सपनों का आशियाना 


और सन्देश दे जाती 

 क्षण भंगुरता का/




4. सागर आज भी वही है

   *****************


   सांझ का धुधलका सघन
   सागर की लहरें और 
   हिचकोले खाता तन मन
   संग तुम्हारे महसूस किया मन ने
   सागर में सागर सा विस्तार
   असीम खुशियाँ, भरपूर प्यार

   वक़्त के बेरहम सफ़र में तुम
   ज़िन्दगी की सरहद के उस पार
   सांझ के तारे में
  करती हूँ तुम्हारा दीदार

   सागर आज भी वही है
   वही सांझ का धुंधलका सघन
   हलचल नहीं है लहरों में
   सतह लगती है शांत
   ठहरा सागर, गहरा मन
   रवान है अशांत मन के
   विचारों का मंथन/


5.  आकाश दीप
     **********
   ज़िंदगी के लम्बे
   अनजान सफ़र में
   जब जब मन लगे भटकने
   अंधियारी डगर 
    कितना भी हो
    यह मन भ्रमित
    आयें ज़िन्दगी में
    कितने भी तूफ़ान
    कितने भी झंझावत
    हो मन
    कितना भी बदगुमाँ


   सागर के बीचों बीच स्थिर
   आकाशदीप से तुम
   तुम हमेशा रहोगे
   मेरे रहनुमा


   6. रेत का  समंदर

     ज़िन्दगी
     रेत का  समंदर
     शोख सुनहली
     रूपहली
     रेत सा भरा
    आमंत्रित करता सा
     प्रतीत होता है
     एक अंजुरी ज़िन्दगी
     पा लेने की हसरत
     लिए
    प्रयास करती हूँ
    रेत को अंजुरी 
में
    समेटने का
    फिसलती सी लगती है
    ज़िन्दगी

    क्षणिक
    हताश हो
   खोल देती हूँ
   जब अंजुरी
   झलक जाता है
   हथेली के बीचों बीच
   एक इकलौता
   रेत का कण
   जो फिसल गए
   वो ज़िन्दगी के पल
   कभी मेरे
   थे ही नहीं

   मेरी ज़िन्दगी का
   पल

   तो
  वो है
  जो जुड़ गया
  मेरी हथेली के बीचों बीच
  एक इकलौता
  रेत का कण
  बन के/




6. इतना इतराया  मत करो 
  *********************

तुम्हारी भव्यता की क़ायल हूँ मैं  

मुझे यह स्वीकारने में
 कोई हिचक नहीं 
अनगिनत तारों जैसी 
 तुम्हारी लहरें गिनना 
 मुमकिन नहीं 
और उस से भी दुश्वार है 
तुम्हारी गहराई की थाह पाना 


पर, सागर तुम इतना इतराया मत करो 
तुम रेत को अपने आवेश में 
बहा ले जा सकते हो 
चट्टान से लड़ने का हौसला 
क्या हैं  तुम में ?


सूर्य की तपन तुम्हे भी 
झेलनी पड़ती है 
पूरे चाँद की रात 
तुम्हें भी मदहोश करती है 
तुम केवल अपनी धुन के 
राजा नहीं हो सकते/

रजनी छाबड़ा 


फासिल्स

                        फासिल्स

                    =========
मृग मरीचिका में 
पहचान तलाशती
आज की युवा पीढ़ी
दिशा भ्रमित होती
रेत के सैलाब सी भटकती
क्या कभी कदमों के निशान छोड़ पायेगी
जिन पर चल कर ,आने वाली पीढ़ियाँ
मंजिलों के सुराग पाएंगी

कल्पना के पंख लगाये, वे उड़ना चाहते है
सपनों के सुनहले गगन में 
टी वी ,साइबर, डिस्को की जेनरेशन
चाहती है ज़िन्दगी में थ्रिल और सेंसेशन

चंचल ,मचलते दिलों को अखरती है
बुजुर्गों की झील से गहरी स्थिरता
होती है कभी कभी बेहद कोफ़्त
जब उनकी बेरोक आज़ादी पर
लगायी जाती है, बुजुर्गों द्वारा टोक

उनकी नज़रों में, बुजुर्ग हैं फासिल्स जैसे
जिन पर कोई क्रिया,कोई प्रतिक्रिया नहीं होती
लाख बदलें, ज़माने के मौसम
उनके लिए कोई फिज़ा
कोई खिज़ा नहीं होती

वक़्त और समाज की चट्टान के बीच  दबते
अपनी संवेदनाओं का दमन करते
परत दर परत, ख़ामोशी के भार से दबते
संस्कारों की वेदी पर, निज इच्छाओं की बलि देते
आजीवन मौन तपस्या करते
धीमे धीमे हो गए वे जड़वत फासिल्स जैसे

नयी पीढ़ी भले ही इन्हें नाम दे
सड़ी गली मान्यताओं के
बोझ तले दबे फासिल्स का
पर यही फासिल्स हैं सबूत  इस सच का
कि इन्ही से मानवता जीवित है

यह मानवता के अवशेष नहीं
यह हैं उन मंजिलों के सुराग
जिनका अनुकरण कर
सभ्यता के कगार पर खड़ी
आधुनिक पीढ़ी  पा सकती है
संस्कारों के भण्डार

फासिल्स  के अस्तित्व से अनजान
अरस्तू ने,यूं की थी
फासिल्स की पहचान
'यही वे सांचे हैं, जिनमें
खुदा ने ज़िंदगी को ढाला है '

सभ्यता और संस्कारों की
गहरी जड़ें फैलाएं
यह फासिल्स ही
सही कुदरत ने इन्हें
बड़े नाज़ों से संभाला है
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मेटा AI द्वारा मेरी कविता फॉसिल्स का विश्लेषण 

संस्कारों का महत्व हमारे जीवन में बहुत अधिक है। संस्कार हमें नैतिकता, मूल्य और आदर्श सिखाते हैं जो हमारे चरित्र और व्यक्तित्व को आकार देते हैं। ये हमें सही और गलत के बीच का अंतर समझने में मदद करते हैं और हमारे निर्णयों को प्रभावित करते हैं।


संस्कारों के कुछ महत्वपूर्ण पहलू हैं:


1. *नैतिकता और मूल्य*: संस्कार हमें नैतिकता और मूल्यों के बारे में सिखाते हैं जो हमारे समाज में महत्वपूर्ण हैं।

2. *व्यक्तिगत विकास*: संस्कार हमें आत्म-विकास और आत्म-सुधार के लिए प्रेरित करते हैं।

3. *सामाजिक जिम्मेदारी*: संस्कार हमें समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों के बारे में जागरूक करते हैं।

4. *सांस्कृतिक विरासत*: संस्कार हमें अपनी सांस्कृतिक विरासत और परंपराओं से जोड़ते हैं।


कविता में कहा गया है, "यही फासिल्स हैं सबूत इस सच का कि इन्ही से मानवता जीवित है" - यह दर्शाता है कि संस्कार और मूल्य हमारी मानवता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

प्रभुता की प्यास


प्रभुता की प्यास 

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अनगिनत नदियाँ 

खो कर अपनी मिठास 

गवां कर निज पहचान 

समा चुकी तुम्हारी आगोश में 

फिर भी शांत नहीं रहते हो तुम 

कब थमेगा यह उफ़ान 

अतृप्त क्यों रहते हो 

 सागर! तुम में अभी भी 

प्रभुता की 

बची कितनी प्यास है /


रजनी छाबड़ा 

मेटा AI द्वारा किया गया विश्लेषण 

प्रभुता का अर्थ है शक्ति,अधिकार या प्रभुत्व / इस कविता में यह शब्द समुद्र की अथाह और अनंत शक्तिको या उसकी अतृप्त इच्छा को दर्शाने के लिए प्रयोग किया गया है/ कवि  समुद्र की  विशालता और उसकी अभी भी बची हुई प्यास को प्रभुता की प्यास से जोड़ कर  एक गहरा अर्थ प्रस्तुत कर  रहा है/

प्रभुता की खोज एक गहरा और जटिल विषय है , जिसमें अक्सर सत्ता, शक्ति और नियंत्रण की इच्छा शामिल होती है / यह इच्छा व्यक्तिगत, सामाजिक, राजनीतिक या दार्शनिक संदर्भों में प्रकट हो सकती है/प्रभुता की प्यास कभी कभी अतृप्त रहती है, जैसा कि इस कविता में समुद्र के रूपक के माध्यम से दर्शाया गया है/ कविता में समुद्र की अतृप्त प्यास प्रभुता की उस अनंत इच्छा को दर्शाती है जो कभी सिमटती ही नहीं/

इस कविता में , सागर को  प्रभुता की प्यास से जोड़ ,कवि ने शक्ति और नियंत्रण की मानव जैसी इच्छाओं को प्रकृति पर आरोपित किया है/ सागर के अतृप्ति और उफ़ान इस बात का प्रतीक हो सकते हैं कि कैसे शक्ति और प्रभुत्व की इच्छा कभी पूरी नहीं होती/

रजनी छाबड़ा