Thursday, October 6, 2022

अधूरी क़शिश

अधूरी क़शिश 

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हवा  के झोंके सा 
बंजारा मन 
संदली बयार 
सावनी फ़ुहार 
क़ुदरत पे निखार 
 भावनाओं केअंबार 

 पतंग सरीखा मन 
क्षितिज छूने की 
तड़पन  

और धरा की 
जुम्बिश 
रह गयी 
अधूरी क़शिश 


रजनी 
27/2/2009 

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