निगाहों के
आख़िरी छोर तक
बैचैन निगाहें
ढूँढती हैं तुम्हे
और तुम
कही नहीं नज़र
आतए आस पास
तब और भी
गहरा जाता है
मेले मैं अकेले
भीढ़ मैं
तनहा होने
का एहसास
आख़िरी छोर तक
बैचैन निगाहें
ढूँढती हैं तुम्हे
और तुम
कही नहीं नज़र
आतए आस पास
तब और भी
गहरा जाता है
मेले मैं अकेले
भीढ़ मैं
तनहा होने
का एहसास
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