पतंग सा शोख मन
लिए चंचलता अपार
छूना चाहता है
पूरे नभ का विस्तार
पर्वत,सागर,अट्टालिकाएं
अनदेखी कर
सब बाधाएं
पग आगे ही आगे बढाएं
ज़िंदगी की थकान को
दूर करने के चाहिए
मन की पतंग
और सपनो का आस्मां
जिसमे मन भेर सके
बेहिचक,सतरंगी उड़ान
पर क्यों थमाएं डोर
पराये हाथों मैं
हर पल खौफ
रहे मन मैं
जाने कब कट जाएँ
कब लुट जाएँ
चंचलता,चपलता
लिए देखे मन
ज़िन्दगी के आईने
पर सच के धरातल
पर टिके कदम ही
देते ज़िंदगी को मायेने
वाह वाह क्या बात है! दिल को छू गई आपकी ये सुंदर और भावपूर्ण रचना!
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