Wednesday, November 11, 2009

kaash!


 सांझ के धुंधलके में
अतीत की कड़ियाँ पिरोते
सुनहले खवाबों की
जोड़ तोड़ में मगन
तनहा थका बोझिल मन
दिल में उभेरता
बस एक ही अरमान
काश!वह अतीत
बन पता मेरा वर्तमान
रजनी छाबरा

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