Saturday, October 17, 2009

जाने कब

बेखुदी
के आलम मैं
ख़ुद को
यूँ पुकारती हूँ
जैसे तुम
बुला रहे हो मुझे
जाने कब उतरेगा
यह जूनून मेरा
कब आएगा
होश मुझे

2 comments:

  1. छोटी सी कविता लेकिन गहरे अर्थ में "मेरे भीतर तुम" ..।

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  2. sharad ji,kavita ki gehrai tak jane ke liya shukriya

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