सिरायक़ी में मेरी पहली कविता
जे मैंकु रोक सकें
*************
जे मैंकु रोक सकें, रोक घिन
मैं हवा दे झोंके वांगु हाँ
ख्यालां दी पतंग वाकण
बारिश दी पलेठी बूंदा वाकण
सूरज दी मधरी धुप्प
चन्दरमा दी ठंडक वाकण
मैं पिंजरे च कैद नही रैहवना
खुला असमाँण सद्दे देवन्दा मैंकु
उच्ची उडारी वास्ते तयार हाँ मैं
रजनी छाबड़ा
10. 35
18/4/2024
अद्भुत
ReplyDeleteउत्साहित करने वाली कविता
Shukriya aapke utsaahvardhak comment ke liye
ReplyDelete