Saturday, February 8, 2025

सिमटदे पर

 सिमटदे  प

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पहाड़, समंदर, उचियाँ इमारतां 

अणदेखी कर सारियां रुकावटां

अज़ाद उड्डण दी ख़्वाहिश नु 

आ गया हे 

अपणे आप ठहराव 


रुकणा  ही न जाणदे जो कदे 

बंधे बंधे चलदे हुण ओही पैर  


उमर दा आ गया हे ऐसा मुक़ाम 

सुफ़ने थम गए 

सिमटण लगे हेन पर  

नहीं भांदे हुण नवे आसमान 


 बंधी बंधी रफ़्तार नाल 

बेमज़ा हे ज़िंदगी दा सफ़र 

 अनकहे  हरफ़ां नु 

क्यूँ न आस दी कहाणी दे देवां 

रुके रुके कदमा नु 

क्यों न फेर रवानी दे देवां /


रजनी छाबड़ा 


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