Thursday, September 3, 2009

गिरवी

करबद्ध
सर
झुकाए
सिकुचा ,सिमटा सा
खड़ा था वेह
झरोखे से
विकीर्णित
होती
किरणों के पास
अपनी कलाकृति के आगे

कैनवास दर्शा रह था
क्षितिज छूने की आस मैं
उनमुक्त उड़ान
भरते विहग
और सामने पर कटे
पाखी सा
घायल
एहसास लिए
वेह कलाकार
गिरवी
रेख चुका था
अपनी अनुभूतियाँ
कल्पनाएँ
,संम्वेद्नाएं
अपनी कला के
सरंक्षक को



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