बो ही है सूरज
रोशनी रूप बदले है नित
बे ही नदियां , बे ही झरने
पाणी रे बगणों रा ढब -ठौर l
बदले है नित
बो ही है, म्हारी जिंदगी
रोज़ाना
पण रोको न थारी चाल
कोसिस करो
नित, नुवी राह खोजै ताणी
अण नुवी मंज़िल ताईं
रजनी छाबड़ा
बहुभाषीय कवयित्री अर अनुवादिका
वही है सूर्य
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सूर्य का स्वरूप वही है
प्रकाश बदलता रहता है नित
वही हैं नदियाँ, वही झरने
पानी के वेग का अंदाज़
बदलता रहता है नित
वही है हमारी ज़िंदगी
दिन-प्रतिदिन
पर कदम थामो नहीं
प्रयत्नशील रहो
नित नयी राह
तलाशने के लिए
और नए आयाम
खँगालने के लिए /
रजनी छाबड़ा
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