मित्रों , आप सब के साथ सांझा कर रही हूँ मेरी नवीनतम अनुदित कृति SWAYAMPRABHA पर मेरे सुधि मित्र श्री राम शरण अग्रवाल जी की पाठकीय प्रतिक्रिया/
स्वयंप्रभा' मिली।
आभारी हूँ आपका आपके स्नेह भाव के लिए।
भारत में भारतीय विरासत के जीवंत रहने का एक निर्णायक कारण है संवाद की सहजता। बुद्ध से तुलसी तक यह परंपरा साहित्य का श्रृंगार बन गयी। मीरा, कबीर,बिहारी ने इसे नए आयाम दिए। प्रस्तुत रचना ने, कविताओं ने मुझे भाव विभोर किया है,उसमें अभिव्यक्ति की सहजता, मनोभावों का प्रवाह, अंत: स्पर्श बन जाता है।
प्रस्तुत पुस्तक की प्रकृति और प्रस्तुति तथा अनुवाद में यह सब कुछ अक्षुण्ण है।
मानस के उद्धरण कहीं न कहीं मुझे स्वनामधन्य अज्ञेय का स्मरण कराते हैं, उनकी पंक्ति है " विगत हमारे कर्मों का लक्ष्य नहीं है परंतु उसकी अनिवार्य पृष्ठभूमि तो है।"
यदि ऐसा नहीं होता तो न " Path" होता और ना ही " The Earth"
यह भी शाश्वत है कि " They have been shown as victorious; but ultimately, they are being conquered by our moral attributes."
पुस्तक के आमुख से।
यह तो हमारा प्राण तत्त्व है।
आभार रचनाकार का।
आमुख मुझे प्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकार आचार्य चतुरसेन शास्त्री के एक शीर्षक की याद दिलाता है ' दुखवा कासे कहूँ सजनी": मेरा विनीत भाव यह है कि ऐसे आमुख रचनाकार,रचना और पाठक के बीच सुगंध और वायु की तरह संचार संवाद करते हैं। यह मुझे प्रिय है।
The Sky gives us a most relevant message that of Jatayu Vriti.
एक सोच जो परिवार से राष्ट्र तक के जीवन को जीवंत रखती रही है।
परिवर्तन के नाम पर हम स्वयं पर प्रहार कर बैठते हैं, मानो
" All of them abruptly
Reached a region
That was totally
Devoid of vegetation."
- Swaymprabha
एक पाठक का सादर कृतज्ञता भाव से धन्यवाद स्वीकार करें।
सादर
राम शरण अग्रवाल
( Unedited clipping sent by him to me on messenger)
राम शरण अग्रवाल
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