तुम लिखा मत करो
तुम खुद कविता हो,,,,
जीने के लिए
बहती सरिता हो,,,
जब भी देखा हूँ तुम्हें
शब्द उगने लगते हैं
नज़्मों में जज़्बात मचलते हैं
हर एहसास मोंगरे सा महकता है
तुम लिखा मत करो,,,
मेरी नज़्मों को साँस देती हो
हर्फ़ दर हर्फ़ तुम बहती हो
मेरी उलझनों में
जीती जागती गीता हो
तुम लिखा मत करो,,,
मेरे स्पंदन में खुद को ढूंढो
जज्बातों के दरिया में मुझे पढ़ो
मेरे एहसासों में जीती हो,
मेरी यादों में जगमगाती हो
तुम लिखा मत करो,,,
एहसास हों या जज़्बात हों
तुम्हारे संग
शब्द अर्थ खोने लगते हैं
तुम मेरी अप्रितम कला मोनालिसा हो
तुम लिखा मत करो,,,
लक्ष्य@myprerna
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