Monday, September 18, 2017

शब्दिका:       काव्य संग्रह
रचनाकार:     डॉ संजीव कुमार
प्रकाशक :      वनिका प्रकाशन, दिल्ली


समकालीन कविता के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. संजीव कुमार की कृति शब्दिका पर अपने कुछ विचार सुधि पाठकों के समक्ष रखना चाह रही हूँ/  पहली बार हिंदी में समीक्षा लिख रही हूँ; अभिव्यक्ति शाब्दिक स्तर पर कुछ कम प्रभावी हो सकती है, फिर भी अपने विचार भावना के स्तर पर प्रस्तुत करने का दुःसाहस कर रही हूँ/

'शब्दिका ' से पूर्व, डॉ. संजीव की काव्य कृतियॉं अंतरा, आकांक्षा, ऋतुम्भरा व् अपराजिता पढ़ने का सौभाग्य मुझे मिला; परन्तु इस काव्य कृति का अंदाज़ कुछ अलग ही है/ मन के भाव अत्यंत सहजता से उकेरे गए है और पाठक स्वतः इस शाब्दिक प्रवाह में बह जाता है/ अनुभूति के विभिन्न आयामों का सतरंगी गुलदस्ता है 'शब्दिका'/
अतीत और वर्तमान की बीच का सफर और उज्जवल भविष्य के सपने, ज़िंदगी की आपाधापी, घर -गाँव के प्रति मोह, इच्छाएँ, आकांक्षाएँ,  उम्मीद के स्वर, प्रकृति के मनमोहक दृश्य सभी कुछ अत्यंत प्रभावी रूप से समाहित है, इस गहन अभिव्यक्ति के काव्य संग्रह 'शब्दिका' में/  सीधे सादे शब्दों में बहुत गहरे अर्थ छुपे हैं/

स्वयं कवि महोदय के शब्दों में:
१  शब्द
कभी अर्थ नहीं बताते
खोजना होता है
शब्दों के मन में गहरे उतर कर
उनका भाव (पृष्ठ १५)


किन्तु सवालों  के हल
अभी भी लापता हैं
और जारी है
अभी भी तलाश
उम्मीद बाकी है/ ( पृष्ठ २१)


भावों को शब्दों में
रूपायित करते
कोई रंग नहीं भरना
उन्हें मुखर होने दो
उसी भाषा में
उसी रूप में
जिसमें वह जनमे हैं
और बनने दो
अभिव्यक्ति को
एक सीधी सादी
शब्दिका  (पृष्ठ १२)


इस काव्य संग्रह ले प्रकाशन पर मैं डॉ. संजीव कुमार को हार्दिक बधाई देते हुए, कामना करती हूँ कि उनकी लेखनी का यश सदैव बना रहे/

रजनी छाबड़ा
कवयित्री  व् अनुवादिका

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