क्षितिज के पास
क्षितिज के पास
कर रहे हो
इन्तज़ार मेरा
जहाँ दो जहान
मिल कर भी
नहीं मिलते
अधूरी है तम्मनाएँ
अधूरी मिलन की आरज़ू
फ़ूल अब खिलकर भी
नहीं खिलते/
क्षितिज के पास
कर रहे हो
इन्तज़ार मेरा
जहाँ दो जहान
मिल कर भी
नहीं मिलते
अधूरी है तम्मनाएँ
अधूरी मिलन की आरज़ू
फ़ूल अब खिलकर भी
नहीं खिलते/
No comments:
Post a Comment