सब आबी आबी
Expression
Tuesday, September 16, 2025
सब आबी आबी
Thursday, September 11, 2025
POWERFUL
POWERFUL
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Bees create honey-hub
With joint venture
Drop by drop
Flowing from
Melting glaciers
Assume form of river
Rivers keep on merging
Into ocean
And ocean become
Limitless and fathomless
Ocean of public opinion is
Also somewhat alike
In unison
Becomes powerful.
Rajni Chhabra
Mutii-lingual Poetess & Translator
Wednesday, August 27, 2025
प्यार और अपनत्व
प्यार और अपनत्व
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माँ तो बस माँ ही होती है
प्यार और अपनत्व की मूर्ति
दुनिया की कोई भी सम्पदा
नहीं कर सकती उसकी पूर्ति
सुर्ख़ उनींदी आँखों से जब
शिशु मचल रहा हो
ले रहा हो करवटें
आप बाँसुरी की
अवरिल धुन सुना के
या मद्धम मद्धम सुर सजा के
कोशिश कर सकते हैं
उसे सुलाने की
परन्तु थपकियाँ देकर
लोरी गुनगुनाते हुए
अपने वक्ष पर शिशु का
सर टिका कर
उसके बालों को हौले हौले सहलाती
माँ के वात्सल्य की गरिमा
का नहीं है कोई सानी
आधुनिकीकरण के इस दौर में
रोबॉट नहीं बन सकता
मानवीय संवेदनाओं का
पूरक या विकल्प
यही संवेदनायें हमारा गौरव
निज की पहचान
मानवता की शान/
Embodiment of love and intimacy
No assets in tis world
Can compensate for her
With half-awake red eyes
When infant is crying
And tossing in bed
Playing non-stop tune of flute
Or humming soft tunes for him
You can try to make him sleep
But there is no match for
Coziness of motherhood
Patting the infant
Humming lullaby
Resting his head
On her bust
Caressing his hairs softly
Moving fingers in it.
In this era of modernism
Robot can not complement
Or be substitute of
Human sentiments
These emotions and sensations are
Our pride, our identity.
Glory of humanity.
Rajni Chhabra
Multi -lingual Poetess & translator
Wednesday, August 20, 2025
जड़ा नाल रिश्ता
जड़ा नाल रिश्ता,(सिरायकी भाषा) की सठ कवितावां दा संकलन, इसकी कवयित्री हैं सुप्रसिद्ध न्यूमरोलाजिस्ट और पंजाबी,राजस्थानी,नेपाली और हिंदी भाषा की अंग्रेजी में अनुवादिका , आदरणीया बहन Rajni Chhabra ji । आप एक प्रसिद्ध ब्लागर हैं रेडियो टेलीविजन से प्रायः कार्यक्रम आते रहते हैं।
सिरायकी एक बहुत प्यारी मीठी भाषा ये भारत की पंजाबी से सिंधी से मिलती जुलती भाषा है। अधिकांशतः यह मुलतान में बोली जाती है जिसके लगभग 28 लाख से भी अधिक बोलने वाले हैं...
मुलतः यह इंडो आर्यन परिवार की भाषा है यह भारतीय उपमहाद्वीप के पूर्वी हिस्से में बहुत जनप्रिय है।
ये फारसी,अरबी, संस्कृत, और उर्दू मिश्रित है। इस काव्य संग्रह की भूमिका सुप्रसिद्ध कवयित्री डा0 अंजु दुआ जेमिनी ने लिखी है।
इसका संपादन सिरायकी के विशेषज्ञ वरिष्ठ लेखक और चिन्तक श्री चन्द्र भानु आर्य जी ने किया है।
Moosa Ashant
Barabanki
वास्तव में ये कविताएं अपनी भाषा /मिट्टी से बिछड़ जाने की पीडाओ की उपज है , जिसे कवयित्री ने बहुत ही अनोखे ढंग से प्रस्तुत किया है।
सिरायकी की एक छोटी मीठी कविता यूँ पढ़िये ...
जे मेंकूँ रोक सकें, रोक घिन
मैं हवा दे झोंके वांगु हाँ
ख्यालां दी पतंग वाकण
बारिश दी पलेठ बूंदां वाकण
सूरज दी मधरी धुप्प
चंद्रमा दी ठंकक वाकण
ऐसे ही अनेक प्यारी प्यारी दर्द से डूबी, भावों से भरी रचनाओं का महत्वपूर्ण गुलदस्ता है।
मुझे यह कल मिला सारी रचनाओं को पढ़ गया। सभी रचनाओं में आनन्द है,पीड़ा है, भाव है, एक अलग कथा है । कवयित्री जो कहना चाहती है उसको सरलतम ढंग से कह सकी है। यही काव्य संग्रह की विशेषता है। आप भी इस भाषा की रचनाओं को पढ़िये... हिंदी रचना संसार इन कविताओं का अवश्य और इस जबान को प्यार देगा।
इस भाषा के गीतों को कभी सुना था रेडियो मुलतान से आज इसको पढ़ने को भी राजेन्द्र नगर दिल्ली से छपकर आयी इस पुस्तक से एक बार रूबरू होने का अवसर मिला। बधाई ,शुभकामनाएं। हिंदी,अंग्रेजी,राजस्थानी के साथ सिरायकी में भी आप लिखती रहें यही कामना।
Sunday, August 17, 2025
सारथी
सारथी
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द्वन्द अक्सर
हावी हो जाता है
दिल ओ दिमाग पर
ज़िन्दगी के दोराहे पर
दो कदम आगे बढ़ाते हैं
कुछ हिम्मत जुटा के
फ़िर, खुद ही पीछे
सरक जाते हैं
बनी बनाई राह पर
लीक से हट के
कुछ करने का
इरादा क्यों
डगमगा सा जाता है/
ओ , मेरे सारथी !
तुम्ही मेरी उलझन
सुलझाओ ना
मेरा स्वयं में
विश्वास जगाओं ना
नवीन और पुरातन में
जंग छिड़ गयी है
तोड़ना चाहती हूँ बेड़ियाँ
पिघलते हिमखंड
शुचित झरना
कल कल बहती नदिया
पिंजरे से मुक्त
उन्मुक्त पंछी
नव विस्तार
आह्वान कर रहा
बदलते युग में
तुम्हीं सार्थक राह
दिखाओं ना
ओ, मेरे सारथी!
तुम्हारे पथ-प्रदर्शन की
मैं प्रार्थी /
रजनी छाबड़ा
Friday, August 8, 2025
Sunday, August 3, 2025
याद कीजिये वो दिन
याद कीजिये वो दिन
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याद कीजिये वो दिन
जज़्बात उभरा करते थे
कल-कल करते निर्झर सी
रवानी लिए
कलम -कागज़ उठाया
उढेल दिए जज़्बात
सरलता से लिख डाली
मन की हर बात
मुँह -जबानी भी
शब्दों को मिलती थी रवानी
पीढ़ी दर पीढ़ी
सुनाए जाते थे
वीर गाथाएँ और कहानी
इंसान के दिलऔर दिमाग के बीच
नहीं था कोई कंप्यूटर
थिरकती उँगलियों से
थिरकते जज़्बात
लिख दिए जाते थे
बरबस कोरे कागज़ पर
कंप्यूटर के चलन ने
बदल दिया लिखने का सलीका
किताब और पाठक का रिश्ता
उँगलियों में लग रहे जंग
और सूखने लगी स्याही
लेखनी कागज़ के संग
रह गयी अनब्याही /
रजनी छाबड़ा
बहुभाषीय कवयित्री व अनुवादिका