Tuesday, September 8, 2009

सांझ के अंधेरे मैं

सांझ
के झुटपुट
अंधेरे मैं
दुआ के लिए
उठा कर हाथ
क्या
मांगना
टूटते
हुए तारे से
जो अपना
ही
अस्तित्व
नहीं रख सकता
कायम
माँगना ही है तो मांगो
डूबते
हुए सूरज से
जो अस्त हो कर भी
नही होता पस्त
अस्त होता है वो,
एक नए सूर्योदय के लिए
अपनी स्वर्णिम किरणों से
रोशन करने को
सारा ज़हान

3 comments:

  1. bahut hi khubsurat kavita hai...ek nai chetna ko janam deti hui....mubark

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  2. माँगना ही है तो मांगो
    डूबते
    हुए सूरज से
    जो अस्त हो कर भी
    नही होता पस्त
    अस्त होता है वो,
    एक नए सूर्योदय के लिए...kya baat kahi aapne....

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