Thursday, January 14, 2010

मैं मनमौजी

मैं मनमौजी
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मुझ से कैसी होड़ पतंग की

मैं पंछी खुले आसमान का

सकल विस्तार

 निज पंखों से नापा

डोर पतंग की

 पराये हाथों

उड़ान गगन की

आधार धरा का

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