Thursday, July 1, 2010

EK DUA

एक दुआ
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वह उम्र के उस रुपहले दौर से
गुज़र रही है
जब दिन सोने के और
रातें चांदी सी
नज़र आती हैं
जब जी चाहता है
आँचल में समेट ले तारे
बहारों से बटोर ले रंग सारे
जब आईने में खुद को निहार
आता है गालों पर
सिंदूरी गुलाब सा निखार
और खुद पर ही गरूर हो जाता है
जब सतरंगी सपनों की दुनिया मे खोये
इंसान खुद से ही बेखबर नज़र आता है
जब तितली सी शोख उड़ान लिए
बगिया में इतराने को जी चाहता है
जब पतंग सी पुलकित उमंग लिए
आकाश नापने को जी चाहता है
जब मन की छोटी से छोटी बात
बताई जाती है सहेली को
जब महसूस होता है,सुलझा सकते हैं
जीवन की हर पहेली को

पर वह मासूम नहीं जानती
कितनी नादान है वह
डोर किसी हाथ में थामे बिना पतंग उड़  नहीं सकती
तितले भी बगिया में बेखौफ घूम नहीं सकती
धूमिल हो जाती है सतरंगी इन्द्रधनुषी छवि भी
सिर्फ पैदा करते हैं खुद के जज़्बात
सुनहले दिन और रुपहले तारों भरी रात

या खुदा!उसकी मासूमियत यूं हो बनाये रखना
ज़िन्दगी में आशा के दीप जलाये रखना
सतरंगी सपनों का संसार न बिखरे कभी
उसके जीवन में बहारों के रंग सजाये रखना

6 comments:

  1. as always.....too gud.....true an itne acche ehssas ki lagta hai apni hi baat apke dwara padh rahi hu........thanx for such nice creation

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  2. thanx for review n sharing ur views,Rewa ji

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  3. n i c e !!
    and...
    i endorse the views expressed by
    respected Rewa ji

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  4. This is a great portrayal of the feelings of a young girl. I found it to be very pure & flawless.I immediately started following this blog on reading the present creation of yours. With Regards.

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