ज्ञान की डगर
गवरा, धापू, लिछमी और रामी
तेज़ तेज़ पग उठाती
शाला की डगर पर बढ़ती जाती
आज बहिन जी सिखाएंगी जोड़ बाक़ी
जिसे समझे सीखे बाद
बनिए की होशियारी
नहीं चल पाती
आखर ज्ञान से है
फ़ायदा ही फ़ायदा
साहूकार का ज़ोर
नहीं चलेगा ज़्यादा
गवरा, धापू, लिछमी और रामी
अब तुम से मन की बात क्यों न कहूँ
गाँव री सबै लुगाइयाँ पढ़ना चाहवें
मैं ही अनपढ़ क्यों रहूँ
चूल्हा सुलगाती , दाल भात राँधती
बिजली से मन मेँ कौंध जाती
धधकती आग निहारती
सुलगता मन लिए
चूल्हे से कच्चे कोयले सरकाती
दीवार पर ही क ख ग घ लिखती जाती
सेंटर नहीं जा पाती, तो क्या
अपनी बेटियों को अपना गुरु बनाती
धापली ज्ञान की डगर पर बढ़ती जाती
राख मेँ सुलगती चिंगारी
आह्वान करती शिक्षा के महायज्ञ का
मेरे गांव की हर नारी
महायज्ञ में आहुति डालती
ज्ञान की मंज़िल पाती
खुशहाली की ओर बढ़ती जाती
रजनी छाबड़ा
गवरा, धापू, लिछमी और रामी
तेज़ तेज़ पग उठाती
शाला की डगर पर बढ़ती जाती
आज बहिन जी सिखाएंगी जोड़ बाक़ी
जिसे समझे सीखे बाद
बनिए की होशियारी
नहीं चल पाती
आखर ज्ञान से है
फ़ायदा ही फ़ायदा
साहूकार का ज़ोर
नहीं चलेगा ज़्यादा
गवरा, धापू, लिछमी और रामी
अब तुम से मन की बात क्यों न कहूँ
गाँव री सबै लुगाइयाँ पढ़ना चाहवें
मैं ही अनपढ़ क्यों रहूँ
चूल्हा सुलगाती , दाल भात राँधती
बिजली से मन मेँ कौंध जाती
धधकती आग निहारती
सुलगता मन लिए
चूल्हे से कच्चे कोयले सरकाती
दीवार पर ही क ख ग घ लिखती जाती
सेंटर नहीं जा पाती, तो क्या
अपनी बेटियों को अपना गुरु बनाती
धापली ज्ञान की डगर पर बढ़ती जाती
राख मेँ सुलगती चिंगारी
आह्वान करती शिक्षा के महायज्ञ का
मेरे गांव की हर नारी
महायज्ञ में आहुति डालती
ज्ञान की मंज़िल पाती
खुशहाली की ओर बढ़ती जाती
रजनी छाबड़ा