सशक्त
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मधुमखियाँ संयुक्त प्रयास से
बनाती शहद का छत्ता
क़तरा क़तरा
प्रवाहित होता
पिघलते हिमखंड से
और नदी का रूप लेता
नदियाँ समाती जाती
सागर में
और सागर बन जाता
असीम, अथाह
जन मत का सागर भी
कुछ ऐसा ही है
एकजुटता से
बनता सशक्त /
रजनी छाबड़ा
सशक्त
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मधुमखियाँ संयुक्त प्रयास से
बनाती शहद का छत्ता
क़तरा क़तरा
प्रवाहित होता
पिघलते हिमखंड से
और नदी का रूप लेता
नदियाँ समाती जाती
सागर में
और सागर बन जाता
असीम, अथाह
जन मत का सागर भी
कुछ ऐसा ही है
एकजुटता से
बनता सशक्त /
रजनी छाबड़ा
नीले खुले आसमान तले
मंद मंद बयार का आनंद लेते
समुद्र तट पर
अजीब से खुशी मिलती है
क़ुदरत के ख़ज़ाने से
कुछ मिलने का एहसास /
'निज से निजता' मेरा पंचम हिंदी काव्य संग्रह , आप सभी सुधि पाठकों के सुपुर्द करते हुए, असीम हर्ष का अनुभव कर रही हूँ /
आरम्भिक कवितायेँ प्राकृतिक-सौंदर्य की अनुभूतियों से प्रेरित हो कर रची, जब में श्रीनगर में अध्ययन रत थी और फिर एक लम्बे अंतराल के बाद, राजस्थान की सुनहरी धरा पर काव्य सृजन का जो सिलसिला शुरू हुआ, प्रभु कृपा और पाठकीय प्रतिक्रिया के फलस्वरूप, अनवरत चल रहा है/ हिंदी, अंग्रेज़ी, पंजाबी, राजस्थानी और मेरी मातृभाषा सिराइकी में स्वतंत्र लेखन के साथ ही साथ, हिंदी, पंजाबी, राजस्थानी, उर्दू व् नेपाली से अंग्रेज़ी में अनुसृजन में भी कार्यरत हूँ/ हाल ही में अंग्रेज़ी से हिंदी में एक महा काव्य का अनुवाद भी किया है/
जीवन की छोटी छोटी खुशियाँ और यादों के मधुबन हमारी अमूल्य निधि हैं/ रिश्तों की गरिमा, अपनों का सानिध्य, अस्तित्व की पहचान और सौहार्द पूर्ण सह-अस्तित्व यही तो ताने -बाने हैं हमारे सामाजिक परिवेश के/ यदि यही सामजिक ताना -बाना तार-तार होने के कगार पर हो, कवि का संवेदनशील मन अछूता कैसे रह पायेगा/ यही अनुभूतियाँ कलमबद्ध करने का प्रयास किया है, अपनी काव्य-कृति 'निज से निजता ' के माध्यम से/
मैं लिखती नहीं
कागज़ पर मेरे जज़्बात बहते हैं
कह न पायी जो कभी
सिले, खामोश लबों से
वही अनकही कहानी कहते हैं/
बचपन से लेकर उम्र के आख़िरी पड़ाव तक का सफर, बहुआयामी चिंताएं, अन्याय, उत्पीड़न, नगरीकरण का दबाव, अपनी माटी की महक, जीवन मूल्यों के प्रति निष्ठा, संस्कारों के प्रति आस्था, प्रेम, विरह , प्रतीक्षा और आकुलता के अबोले बोल कागज़ पर उकरने का प्रयास किया है/ आधुनिककरण, प्रकृति के हरित आँचल में सिमटी सुंदरता, नभ और सागर का विस्तार, सिंदूरी सूरज और तारों जड़ी रात, ऐन्द्रिय धरातल पर कुछ बिम्ब बनाते हैं; इन्हे शब्दों का रूप दे कर उकेरा है/
ज़िंदगी की आपाधापी में, अपनी जड़ों से नाता टूटता जा रहा है/ अपने इर्द गिर्द, मकड़ी सम ताने बने बुनते , हम अपने ही जाल में उलझ कर रह गए हैं/ स्वयं से बतियाने और आत्म विश्लेषण का तो वक़्त ही नहीं मिलता कभी/
बेवज़ह सी लगती ज़िंदगी में
कोई वजह तलाशिये
ख़ुद के साथ लगाव
अक्सर कर देता है दूर तनाव
हम ईश की रची हुई
अतुलनीय रचना है
स्वाभिमान और
यह एहसास
लाता है जीवन में
सार्थकता और निख़ार/
समुद्र तट पर
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नीले खुले आसमान तले
मंद मंद बयार का आनंद लेते
समुद्र तट पर
सीपियाँ, शंख बटोरते
अजीब से खुशी मिलती है
क़ुदरत के ख़ज़ाने से
कुछ मिलने का एहसास /
अपनी कल्पना शीलता से
रेत के घरौंदे बनाते
और उस पर अपना नाम उकेरते
मासूम बच्चे, खिलखिलाते
पुलकित होते देख
सागर का विस्तार
अगले ही क्षण
तट से टकराती लहरें
बहा कर ले जाती
उनके सपनों का आशियाना
और सन्देश दे जाती
क्षण भंगुरता का/
रजनी छाबड़ा
मेटा AI द्वारा कविता का विश्लेषण