Friday, August 28, 2009

लम्हा लम्हा ज़िन्दगी

मैं लम्हा लम्हा ज़िन्दगी
टुकडों मैं जी लेती हूँ
कतरा कतरा ही सही
जब भी मिले
जीवन का अमृत
पी लेती हूँ
वक्त के सागर की रेत से
अंजुरी मैं बटोरे
रेत के कुछ कण
जुड़ गए हैं
मेरी हथेली के बीचों
बीच
उन्ही
रेत के कणों
से सागर
एहसास
संजों
लेती हूं
मैं लम्हा लम्हा जिन्दगी
टूकडों मैं जी लेती हूँ
कतरा कतरा ही सही
जब भी मिले
तेरे
नह

का अमृत
पी लेती
हूँ











4 comments:

  1. उदास जिंदगी के मरुस्थल में स्नेह का अमृत सच में ही मनुष्य के जीने का सहारा बनता है.....पर कुछ
    लोगों को तो यह भी नसीब नहीं होता...आप
    खुशकिस्मत हो......

    ReplyDelete
  2. kisi ne sach hi kaha hai hindi ka aanchal bahut bada hai. aaj dikh gaya . mananiya rajani ji ne udaharan pesh kar diya hai.. aage badh gayee hai log chalte jayenge... koti koti dhanyawaad

    ReplyDelete
  3. bahut accha likha hai......jitna mile usmai hi khushi dhudh lo........

    ReplyDelete