Monday, August 24, 2009

इंतज़ार

इंतज़ार
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तू
लौट आ
वरना
मैं यूँ ही
जागती रहूंगी
रात रात भर
चाँदनी रातों मैं
लिख लिख कर
मिटाती रहूंगी
तेरा नाम
रेत पर

और हर  सुबह
नींद से
बोझिल पलकें लिए
सुर्ख,उनींदी
आंखों से
काटती
रहूंगी
कलेंडर से
एक और तारीख
इस सच का
सबूत
बनते हुए
कि
एक
और रोज़
तुझे
याद किया
तेरा नाम लिया
तुझे याद किया
तेरा नाम लिया

2 comments:

  1. tum laut aao k har saans k saath mai tumhe yaad karta hun....
    bahut hi bewas ahsaas ki kavita hai ye....par jaane wale kabhi laut kar nahi aate aur hum unke intzar me bas kaviten likhte hain.....amarjeet

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  2. accha hai app issi bahanai yad kerti hoi

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