Saturday, September 12, 2009

माँ

ज़िन्दगी और
मौत के बीच
zindagi से lachaar
से पड़ी थी तुम
मन ही मन तब चाहा था मैंने
की आज तक तुम मेरी माँ थी
आज मेरी बेटी बन जाओ
अपने आँचल की छाओं मैं
लेकर करूं तुम्हारा दुलार
अनगिनत
mannaten
खुदा से कर
मांगी थी तुम्हारी जान की खैर

बरसों तुमने मुझे
पाला पोसा और संवारा
सुख सुविधा ने
जब कभी भी किया
मुझ से किनारा
रातों के नींद
दिन का चैन
सभी कुछ मुझ पे वारा
मेरी आँखों मैं गेर कभी
दो आँसू भी उभरे
अपने स्नेहिल आँचल मैं
sokhलिए तुमने
एक अंकुर थी मैं
स्नेह, ममता
से सींच कर मुझे
छाया भेरा तरु
banayaa
ज़िंदगी
भेर मेरा मनोबल
बढाया
हर विषम परिस्थिति मैं
मुझ को समझाया
वो बेल कभी न होना तुम
जो परवान चढ़े
दूसरों के सहारे
अपना सहारा ख़ुद बनना
है तुम्हे,ताकि परवान चढा
सको उन्हें जो हैं तुम्हारे सहारे

पैर तुम्हे सहारा देने की तमन्ना
दिल मैं ही रह गयी
तुम ,हाँ, तुम जिसने सारा जीवन
सार्थकता से बिताया था
कभी किसी
के आगे
सेर न झुकाया था
जिस शान से जी थी
उसी शान से दुनिया छोड़ चली
हाँ, मैं ही भूल गयीथी
उन्हें बैसाखियों के सहारे चलना
कभी नही होता गवारा
जो हर हाल मैं
देते रहे हो सहारा





2 comments:

  1. aapki kavita pad kar mujhe apni maa ki yaad aa gai.....amarjeet

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  2. उन्हें बैसाखियों के सहारे चलना
    कभी नही होता गवारा
    जो हर हाल मैं
    देते रहे हो सहारा

    100% Universal truth you have include in these words. Thanks to remember "Maa"

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