Saturday, September 5, 2009

ज्योति

है जिनके जीवन का
हर दिन रात जैसा
और हर रात
अमावस सी काली
क्या तुम उनकी बनोगे दीवाली
वो महसूस कर सकते हैं
मंद मंद चलती बयार
पर नही जानते
क्या होती है बहार
नही जानते वो
बहारों के रंग
कैसे करती तितलियाँ
अठखेलियाँ
फूलों के संग
क्या होते हैं इन्द्रधुनुष के रंग
अपनी
आंखों से दुनिया देखने की उमंग
बाद अपने क्या तुम दोगे
उन्हें हसीं सपने
देख सकेंगे वो
दुनिया तुम्हारी आंखों से
न रहेगी उनकी दुनिया काली
उजाला ही
उजाला
हेर दिन खुशहाली
हेर रात उनकी
दीवाली















3 comments:

  1. ek jyoti hi andhkaar ko mitane ki himmat rakhti hai...usi tarah bhagwaan apko bhi..itni himmat deyy ki aap apne jiwan me sab paye....gr8 poem..inspiring life

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  2. bhut achi likhati hai aap kaha se ye khayal aata hai aapke jaihan hai maan kara hai agar dene ko hota to mai aapko amritatav ka baradan diya hota

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  3. आपकी यह कविता दरअसल आपके मन
    की खूबसूरती और करुणा का ही विस्तार
    है......मेरा स्नेह कबूल करें

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