Thursday, September 10, 2009

पूर्णता की चाह मैं

या खुदा!
थोड़ा सा अधूरा रहने दे
मेरी ज़िन्दगी का प्याला
ताकि प्रयास जारी रहे
उसे पूरा भरने का

जब प्याला
भर जाता है लबालब
भय रहता है
उसके छलकने का
बिखरने का
जब प्याला
रहता है अधूरा
प्रयास रहता, उसमे
कुछ और कतरे
समेटने का

जो जूनून
पूर्णता
पाने के प्रयास मैं है
वो पूर्णता मैं कहाँ

लबालब प्याले मैं
और भेरने की
गुन्जायिश नही
रहती ज़िन्दगी से
और कोई
ख्वाहिश नहीं

पूर्णता बना देती
संतुष्ट और बेखबर
पूर्णता की
चाह करती
प्रयास को मुखेर

मुझे थोड़े से
अधूरेपन मैं ही जीने दे
घूँट घूँट ज़िन्दगी पीने दे
सतत प्रयासशील
ज़िन्दगी जीने दे



2 comments:

  1. असल में ये अधूरेपन का अहसास ही मनुष्य
    को और जगत को चलायमान रखता है....पूर्णता तो
    मौत है....इसी तरह एक इंतज़ार में जीने में
    जीवन का असली स्वाद छिपा है........आप सच में
    बहुत खुबसूरत लिखते हो......

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  2. मुझे थोड़े से
    अधूरेपन मैं ही जीने दे
    घूँट घूँट ज़िन्दगी पीने दे
    सतत प्रयासशील
    ज़िन्दगी जीने दे

    bahut bade bade shayer yaad aa gaye aap ke is badee rachnaa ko padh ke aap bahut kamal likhtee hain wah

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