आइए ,इस अंदाज़ से होली मनाये
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आइए,इस अंदाज़ से होली मनाये
होली जलाएं दुर्गुणों की,
साम्प्रदायिकता की
संकीर्ण मानसिकता की
गत वर्षों में
बहुत उड़ायें हैं
मानवता के खून के छींटे
इस वर्ष,मिटे कर सब मलाल
लगायें सभी को
आत्मीयता से गुलाल
मिटा कर जात पात
अपने पराये का ख्याल
लगायें सभी को आत्मीयता से गुलाल
खुशियों के रंग में रंगे जीवन
सभी रहे सदा खुशहाल
रजनी छाबरा.
Sunday, February 28, 2010
Saturday, February 27, 2010
indradhanush
मेरी
ज़िन्दगी के आकाश पे
इन्द्रधनुष सा
उभरे तुम
नील गगन सा विस्तृत
तुम्हारा प्रेम
तन मन को पुलकित
हरा भरा कर देता
खरे सोने सा सच्चा
तुम्हारा प्रेम
जीवन
रंग देता
तुम्हारे
स्नेह की
पीली ,सुनहली
धूप मैं
नारंगी सपनों का
ताना बाना बुनते
संग तुम्हारे पाया
जीवन मैं
प्रेम की लालिमा
सा विस्तार
इंद्रधनुषी
सपनो से
सजा
संवरा
अपना संसार
बाद
तुम्हारे
इन्द्रधनुष के और
रंग खो गए
बस, बैंजनी विषाद
की छाया
दूनी है
बिन तेरे ,
मेरी ज़िन्दगी
सूनी सूनी
है
रजनी छाबड़ा
ज़िन्दगी के आकाश पे
इन्द्रधनुष सा
उभरे तुम
नील गगन सा विस्तृत
तुम्हारा प्रेम
तन मन को पुलकित
हरा भरा कर देता
खरे सोने सा सच्चा
तुम्हारा प्रेम
जीवन
रंग देता
तुम्हारे
स्नेह की
पीली ,सुनहली
धूप मैं
नारंगी सपनों का
ताना बाना बुनते
संग तुम्हारे पाया
जीवन मैं
प्रेम की लालिमा
सा विस्तार
इंद्रधनुषी
सपनो से
सजा
संवरा
अपना संसार
बाद
तुम्हारे
इन्द्रधनुष के और
रंग खो गए
बस, बैंजनी विषाद
की छाया
दूनी है
बिन तेरे ,
मेरी ज़िन्दगी
सूनी सूनी
है
रजनी छाबड़ा
Thursday, February 25, 2010
सुकून में कहाँ वो मज़ा
सुकून में कहाँ वो मज़ा
सुकून में कहाँ वो मज़ा
जो देती है बेताबी
जूनून देता है बेताबी
हर पल पाने को कामयाबी
सुकून है मंजिल
रास्ता है बेताबी
रजनी छाबड़ा
सुकून में कहाँ वो मज़ा
जो देती है बेताबी
जूनून देता है बेताबी
हर पल पाने को कामयाबी
सुकून है मंजिल
रास्ता है बेताबी
रजनी छाबड़ा
Wednesday, February 24, 2010
apni pehchaan
अपनी पहचान
==========
खुद से रु ब रु होने के बाद भी
हम अपनी पहचान के लिए
आईने क्यों तलाशते हैं
आईने झलक दिखा देते हैं
जिस्मानी अक्स की
रुहानी अक्स की पहचान
हम इन में कहाँ पाते हैं
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खुद से रु ब रु होने के बाद भी
हम अपनी पहचान के लिए
आईने क्यों तलाशते हैं
आईने झलक दिखा देते हैं
जिस्मानी अक्स की
रुहानी अक्स की पहचान
हम इन में कहाँ पाते हैं
Saturday, February 20, 2010
agni ke antim rath per
अग्नि के अंतिम रथ पर विदा हुए जब तुम
तुम अकेले न थे उस में
संग थे मेरे अरमान,मेरे सपने
तुम ज़िन्दगी की सरहद के उस पार
सांझ के तारे में
करती हूँ तुम्हारा दीदार
तेरी यादों की अरणियों से
सुलगती अब भी
दफ़न हुई राख़ में चिंगारियां
तिल तिल सुलगाती मुझे
ज़िन्दगी के तनहा सफ़र में
तुम अकेले न थे उस में
संग थे मेरे अरमान,मेरे सपने
तुम ज़िन्दगी की सरहद के उस पार
सांझ के तारे में
करती हूँ तुम्हारा दीदार
तेरी यादों की अरणियों से
सुलगती अब भी
दफ़न हुई राख़ में चिंगारियां
तिल तिल सुलगाती मुझे
ज़िन्दगी के तनहा सफ़र में
Thursday, February 4, 2010
zindagi ne to mujhe kabhi fursatt na di
ज़िन्दगी ने तो मुझे कभी फुर्सत न दी
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ज़िन्दगी ने तो मुझे कभी फुर्सत न दी
ऐ,मौत,तू ही कुछ मोहलत दे
अत्ता करने हैं अभी
कुछ क़र्ज़ ज़िन्दगी के
अदा करने हैं अभी
कुछ फ़र्ज़ ज़िन्दगी के
पेशतर इसके,हो जाऊं
इस ज़हान से रुक्सत
चंद फ़र्ज़ अदा करने की,
ऐ मौत, तू ही कुछ मोहलत दे
अधूरी है तमन्ना अभी
मंजिलों को पाने की
पेशतर इसके
खो जाऊं,
गुमनाम अंधेरों में
चंद चिराग रोशन करने
ए मौत,तू ही कुछ मोहलत दे
रजनी छाबरा
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ज़िन्दगी ने तो मुझे कभी फुर्सत न दी
ऐ,मौत,तू ही कुछ मोहलत दे
अत्ता करने हैं अभी
कुछ क़र्ज़ ज़िन्दगी के
अदा करने हैं अभी
कुछ फ़र्ज़ ज़िन्दगी के
पेशतर इसके,हो जाऊं
इस ज़हान से रुक्सत
चंद फ़र्ज़ अदा करने की,
ऐ मौत, तू ही कुछ मोहलत दे
अधूरी है तमन्ना अभी
मंजिलों को पाने की
पेशतर इसके
खो जाऊं,
गुमनाम अंधेरों में
चंद चिराग रोशन करने
ए मौत,तू ही कुछ मोहलत दे
रजनी छाबरा
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