अपनी माटी
************
बस्ती में रह के
जंगल के लिए
मन मयूर
कसकता है
इस देहाती मन का
क्या करुं
अपनी माटी की
महक को तरसता है
कैसे भूल जाऊं
अपने गाँव को
रिश्तों की
सौंधी गलियों में
वहाँ अपनेपन का
मेह बरसता है/
रजनी छाबड़ा
कम्प्यूटर के युग मैं
=============
कम्प्यूटर के इस युग मैं
कट,कापी ,पेस्ट
के चलन ने
कैसी वैचारिक क्रांति लाई
मौलिक सोच को
लगने लगा जंग
और सूखने लगी स्याही
लेखनी ,कागज़ के संग
रह गयी अनब्याही
फैशन
यदि
अंग प्रदर्शन ही
फैशन है,
तो हम
बहुत अभागे हैं
जानवर
इस दौड़ में
हम से
कहीं आगे हैं
रजनी छाबड़ा