रात के स्याह अँधेरे में
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रात के स्याह अँधेरे में
एक नारी देह
धराशायी हुई
बहु-मंज़ली ईमारत से
और लग गया जमघट
शुरू हो गया
क़यासों का सिलसिला
यह आत्महत्या है
या जघन्य हत्या
बिना कुछ जाने
क़यास लगाये जाते है/
एक निरीह अबला आत्महत्या करे
तब भी दोष उसी के सर मढ़ा जाता है
“ऐसा आत्मघाती कदम उठाने से पहले
अबोध बच्चों का तो कुछ सोचती”/
जिसके कारण यह हालात बने
उस पर कोई ऊंगली क्यों नहीं उठाता
अंततः जब तहकीकात बताती है
“दोषी पुरुष था”
सभ्य समाज
विरोध के स्वर क्यों नहीं गूँजाता”?
क्या कभी किसी ने
ऐसा भी सोचा है?
वैवाहिक रिश्तों में
दरार और तकरार
लाता हैं मासूम संतान पर
तबाही का अम्बार/
कोई जान से गया
और कोई सलाखों के पीछे गया
बच्चों को अनाथ कर के
दुश्वारियों की विरासत दे गया/
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@रजनी छाबड़ा
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