मन विहग
*********
आकुल निगाहें
बेकल राहें
विलुप्त होता
अनुपथ
क्षितिज
छूने की आस
अतृप्त प्यास
तपती मरुधरा में
सावनी बयार
नेह मेह का बरसना
ज़िन्दगी का सरसना
भ्रामक स्वप्न
खुली आँख का छल
मन विहग के
पर कतरना
यही
यथार्थ का
धरातल
आकुल निगाहें
बेकल राहें
विलुप्त होता
अनुपथ
क्षितिज
छूने की आस
अतृप्त प्यास
तपती मरुधरा में
सावनी बयार
नेह मेह का बरसना
ज़िन्दगी का सरसना
भ्रामक स्वप्न
खुली आँख का छल
मन विहग के
पर कतरना
यही
यथार्थ का
धरातल
No comments:
Post a Comment